सोमवार, 10 नवंबर 2014

"षोडशोपचार पूजन" में निम्न सोलह तरीके से विधिपूर्वक पूजन किया जाता है-

"षोडशोपचार पूजन" में निम्न सोलह तरीके से विधिपूर्वक पूजन किया जाता है-

1. ध्यान-आवाहन-

मन्त्रों और भाव द्वारा भगवान का ध्यान किया जाता है..
आवाहन का अर्थ है-
पास लाना..
ईष्ट देवता को अपने सम्मुख या पास लाने के लिए आवाहन किया जाता है..
उनसे निवेदन किया जाता है कि वे हमारे सामने हमारे पास आएँ, इसमें भाव यह होता है कि वह हमारे ईष्ट देवता की मूर्ति में वास करें, तथा हमें आत्मिक बल एवं आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करें, ताकि हम उनका आदरपूर्वक सत्कार करें..
जिस प्रकार मनोवांछित मेहमान या मित्र को अपने यहां आया देखकर आनंद/प्रसन्नता होती है..

2. आसन..

3. पाद्य- पाद्यं, अर्घ्य-
दोनों ही सम्मान सूचक है..
ऐसा भाव करना है कि भगवान के प्रकट होने पर उनके हाथ-पाँव धुलाकर आचमन कराकर स्नान कराते हैं..

4. अर्घ्य-

अर्घ्य के विषय में पाद्य में बता दिया गया है..

5. आचमन-
आचमन यानी मन, कर्म और वचन से शुद्धि..
आचमन का अर्थ है-
अंजुलि मे जल लेकर पीना,
यह शुद्धि के लिए किया जाता है..
आचमन तीन बार किया जाता है,
इससे मन की शुद्धि होती है..

6. स्नान-

ईश्वर को शुद्ध जल से स्नान कराया जाता है..
एक तरह से यह ईश्वर का स्वागत सत्कार होता है..
जल से स्नान के उपरांत भगवान को पंचामृत स्नान कराया जाता है..
7. वस्त्र-
ईश्वर को स्नान के बाद वस्त्र चढ़ाये जाते हैं,
ऐसा भाव रखा जाता है कि हम ईश्वर को अपने हाथों से वस्त्र अर्पण कर रहे हैं या पहना रहे है, यह ईश्वर की सेवा है..

8. यज्ञोपवीत-
यज्ञोपवीत का अर्थ जनेऊ होता है..
यह भगवान को समर्पित किया जाता है,
यह देवी को अर्पण नहीं किया जाता है..

9. गंधाक्षत-
रोली, हल्दी,चन्दन, अबीर, गुलाल, अक्षत (अखंडित चावल)

10. पुष्प-
फूल माला (जिस ईश्वर का पूजन हो रहा है उसके पसंद के फूल और उसकी माला)

11. धूप-
धूपबत्ती..

12. दीप-
दीपक (शुद्ध घी का इस्तेमाल करें)

13. नैवेद्य-
भगवान को मिष्ठान का भोग लगाया जाता है..

14.ताम्बूल, दक्षिणा, जल -आरती-
ताम्बूल का मतलब पान है..
यह महत्वपूर्ण पूजन सामग्री है..
फल के बाद ताम्बूल समर्पित किया जाता है..
ताम्बूल के साथ में पुंगी फल (सुपारी), लौंग और इलायची भी डाली जाती है..
दक्षिणा अर्थात् द्रव्य समर्पित किया जाता है..
भगवान भाव के भूखे हैं, अत: उन्हें द्रव्य से कोई लेना-देना नहीं है..
द्रव्य के रूप में रुपए, स्वर्ण ,चांदी, कुछ भी अर्पित किया जा सकता है..

आरती, पूजा के अंत में धूप, दीप, कपूर से की जाती है..
इसके बिना पूजा अधूरी मानी जाती है..
आरती में एक, तीन, पांच, सात यानि विषम बत्तियों वाला दीपक प्रयोग किया जाता है..
आरती चार प्रकार की होती है :–दीपआरती- जलआरती- धूप, कपूर, अगरबत्ती से आरती- पुष्प आरती..

15. मंत्र पुष्पांजलि-
मंत्र पुष्पांजली मंत्रों द्वारा हाथों में फूल लेकर भगवान को पुष्प समर्पित किए जाते हैं तथा प्रार्थना की जाती है..
भाव यह है कि इन पुष्पों की सुगंध की तरह हमारा यश सब तरफ फैले तथा हम प्रसन्नता पूर्वक जीवन बिताएं..

16. प्रदक्षिणा-
नमस्कार, स्तुति-
प्रदक्षिणा का अर्थ है परिक्रमा..
आरती के उपरांत भगवान की परिक्रमा की जाती है, परिक्रमा हमेशा क्लॉक वाइज (clock-wise) करनी चाहिए..
स्तुति में क्षमा प्रार्थना करते हैं,
क्षमा मांगने का आशय है कि हमसे कुछ भूल, गलती हो गई हो तो आप हमारे अपराध को क्षमा करें..

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