शनिवार, 13 दिसंबर 2014

=== सिद्धी का भूत ===साधनाओ का संसार sadhna,seeddhee,bhut,pret,seeddh,

=== सिद्धी का भूत ===साधनाओ का संसार ==
          किसी व्यक्ति को साधनाओ को संपन्न करने का और प्रसिद्ध होने को शोक लगा = व पूजा पाठ करने लगा बहुत ज्यादा समय इसमें लगाने लगा \\
 == किसी ने उसको हनुमान जी की विधि बताई और यह भी बताया की इसमें संयम से रहते हे , उनकी पत्नी भी थी , कुछ ही दिनों में उन्हें एक संयमी प्रेत ने पकड़ लिया = उनकी भाषा में लिखे तो उन्हें सिद्धी हो गयी == अक्सर अनेको प्रेत-भुत अपनी सेवा के लिए लोगो को पकड़ लेते हे , और वह व्यक्ति उन्हीं की सेवा पूजा में लगा रहता हे \\ वह जो कहता हे वह होता हे उसको भविष्यवाणी का शोक लग जाता हे , उसकी वाणी में चमत्कार भी होते हे , आनेको रहस्यमय बातें भी वह बताता हे , और फिर होता हे इसका व्यापर आरम्भ = पहले वह साधक सेवा भावी ही होता हे फिर वह व्यापारी बनता जाता हे , उसके पास जुवारियो - सटोरियों की और आज के समय में वायदा बाजार वालों की लाइन लगती हे और बस == यह कुछ ही दिन चलता हे , फिर भविष्य बताने से उसका सत तेज नस्ट हो जाता हे \\ == इस तरह का व्यक्ति किसी प्रकार का कार्य या व्यवसाय नहीं करता हे = भगवन के नाम पर ही लोगो का दिया खाता हे , यदि व्यापर करें भी तो वह चलता नहीं हे , हाँ यदि नौकरी हो तो बात अलग हे ,\ == अब उनके संयम से पत्नी व्यथित उनका मन तो वह जाता नहीं और पत्नी की व्यथा - उसकी विरह वेदना और साहचर्य की चेस्टा बड़ी विलक्षण स्थिति == अब वह महाशय अलग कमरे में सोने लगे = कारण था की किसी दिन संयम जवाब दे गया और वह कुछ दिनों तक शक्ति विहीन से हो गए = फिर क्या नारी नरक का द्वार नजर आने लगी और क्या ........ पत्नी अन्यत्र ..... == अब यह महिलावों से भुत दूर रहते = उन्हें अपने पास भी नहीं आने देते = और बात किसी महिला से नहीं करते = किसी स्त्री को पैर भी नहीं छूने देते == इसका भी कारन था की स्त्री के पैर को हाथ लगाने के बाद उनकी काम चेस्टा तत्काल बाद जाती कंट्रोल करना मुश्किल हो जाता और वह विचलित हो जाते और पत्नी से साहचर्य कर नहीं सकते सो हस्ताचार से ऊर्जा को नस्ट करने से ही शांति मिलती यह भी दुःख \\ == अब पत्नी के हाथ का बनाया खाना भी नहीं खाए स्वयं ही बनाये = परिवार भी और रिस्तेदार भी दुःखी मगर वह बड़े ही प्रशन्न की लोग तारीफ करते हे \\ == और इस तरह साधना ने उनका जीवन ही बदल दिया == स्वर्ग था यह या नरक समझ नहीं आता उन्हें किन्तु वह जानते थे की वह मोक्षगामी हे और परमात्मा के पास जायेंगे \\ == किन्तु वास्तव में यह एक बीमारी ही हे जो ठीक हो सकती हे , यह प्रेत बाधा ही हे , जो की किसी पूजा पति की आत्मा का प्रवेश हे \\ इस तरह यदि किसी बेवड़े की आत्मा लग जाये तो वह आदमी शराबी हो जाता हे , और यदि आत्मा किसी नीच आदमी की लग जाये तो वह नीच ही बन जता हे \\ किसी ज्योतिष की आत्मा लग जाये तो वह ज्योतिष हो जाता हे \\ किसी पंडित की आत्मा लग जाये तो आदमी पूजा पाठी बन जाता हे \\ जब भी कोई व्यक्ति अपनी आदत के विपरीत कार्य करने लग जाये तो समझो की किसी अन्य के असर में यह आ चूका हे \\ और यह कभी कभी नहीं होता हे यह उसकी महादशा के बदलने या अंतर दशा बदलने पर ही होता हे , यह यदि राहु के प्रभाव से हो तो वह शराबी = कबाबी सिद्ध , गुरु से हो तो अत्यंत धार्मिक पूजा पाठी , सूर्य से हो तो अत्यंत प्रभावशाली तेजस्वी गुरु , मंगल से हो तो हिंसक गुस्सेल सिद्ध , शुक्र से होतो धनात्मक संत या सिद्ध जिसका मन धन में लगा रहे , बुध से हो तो ज्ञानी विद्वान और ज्योतिष संत साधु या सिद्ध , शनि से हो तो नपुंसक ,त्यागी,तपस्वी,संत,सिद्ध प्रसिद्ध सन्यासी,वस्त्र विहीन संत बनता हे या इसी तरह की आत्मा उसको लगती हे \\ यह एक बीमारी ही हे जो ठीक हो जाती हे , \\ किन्तु आसानी से ठीक नहीं होती हे \\ इसका इलाज आधुनिक विज्ञानं के पास नहीं हे , और न ही कोई इलाज इनके पास हे , इस तरह की बीमारी को वह मानसिक रोग और डिप्रेशन कहते हे और उनके पास इसका एक ही इलाज हे , नींद की गोली या दवाई , इनका मन्ना हे की यह सो जायेगा तो ठीक हो जायेगा , किन्तु महीनो के इलाज से भी यह ठीक नहीं होते हे == इनको किसी जानकर , सिद्ध को दिखया जय तो यह कुछ ही समय में ठीक हो जाते हे == इस तरह की बीमारी अस्त केतु के समय या भीत अवस्था के समय प्रभावकारी होती हे \\ राम राम \\ === यहाँ तक पड़ने पर जो भी विचार आपको आये , वह अपनी स्वतंत्र पोस्ट बनाकर ही व्यक्त करे , कोई कॉमेंट , सलाह , विद्वत्ता या खुशी=दुःख व्यक्त नहीं करे , इससे लोग भटकते हे == यह भी संभव हे की आप हमसे ज्यादा ही जानते हे , और विद्वान भी आप हे ही \\ 09926077010 =

रविवार, 7 दिसंबर 2014

लड़के वालों को लड़की दिखाने का सर्वोत्तम समय \ पहली बार में पसंद आने का समय

लड़के वालों को लड़की दिखाने का सर्वोत्तम समय \ पहली बार में पसंद आने का समय 
== इस माह अधिकतर  रिश्तों हेतु  लड़के व लड़की देखने दिखाने  व परिचय सम्मलेन का होता हे \\
= सोमवार को = 11  से 12  == शाम  6  से 7 
= मंगलवार को - 3  से 4  बजे के मध्य में 
== बुधवार को = 12  से 1  और शाम 7  से 8 
== गुरुवार को = सुबह 9  से 10  और सायंकाल 4  से 5  के मध्य में  
== शुक्रवार को = दोपहर 1  से 2   और रात्रि में 8  से 9  के मध्य में 
== शनिवार को == सुबह 10  बजे से 11  के मध्य में == यदि लड़के वालो को इस समय लड़की दिखाई जाती हे तो वह उन्हें अतिशीघ्र पसंद आ जाती हे , इस तरह आपकी व्यर्थ की परेशानी बचती हे \\ जब भी लड़के वाले देखने आने वाले हो तब इस सरणी के समय में ही उन्हें दिखाने के लिया बुलवाये या इस तरह समय रखे की वह आपके यहाँ इस समय में ही पधारें \\ यह बहुत आजमाया हुवा समय हे \\विवाह ,सगाई , रिस्ता ,

शनिवार, 15 नवंबर 2014

====श्री नारायण कवच===== === जीवन में उन्नति और सर्वबाधा के निवारण हेतु प्रयोग करें ==

====श्री नारायण कवच=====
=== जीवन में उन्नति और सर्वबाधा के निवारण हेतु प्रयोग करें ==

न्यासः- सर्वप्रथम श्रीगणेश जी तथा भगवाननारायण को नमस्कार करके नीचे लिखे प्रकार सेन्यास करें।
अगं-न्यासः-
ॐ ॐ नमः — पादयोः ( दाहिने हाँथ की तर्जनी वअंगुठा — इन दोनों को मिलाकरदोनों पैरों का स्पर्श करें)।
ॐ नं नमः — जानुनोः ( दाहिने हाँथ की तर्जनी वअंगुठा — इन दोनों को मिलाकरदोनों घुटनों का स्पर्श करें )।
ॐ मों नमः — ऊर्वोः (दाहिने हाथकी तर्जनी अंगुठा — इन दोनों को मिलाकरदोनों पैरों की जाँघ का स्पर्श करें)।
ॐ नां नमः — उदरे ( दाहिने हाथकी तर्जनी तथा अंगुठा — इन दोनों को मिलाकर पेटका स्पर्श करे )
ॐ रां नमः — हृदि ( मध्यमा-अनामिका-तर्जनी सेहृदय का स्पर्श करें )
ॐ यं नमः – उरसि ( मध्यमा- अनामिका-तर्जनी सेछाती का स्पर्श करे )
ॐ णां नमः — मुखे ( तर्जनी – अँगुठे के संयोग से मुखका स्पर्श करे )
ॐ यं नमः — शिरसि ( तर्जनी -मध्यमा के संयोग से सिर का स्पर्श करे )
कर-न्यासः-
ॐ ॐ नमः — दक्षिणतर्जन्याम् ( दाहिने अँगुठे सेदाहिने तर्जनी के सिरे का स्पर्श करे )
ॐ नं नमः —-दक्षिणमध्यमायाम् ( दाहिने अँगुठे सेदाहिने हाथ की मध्यमा अँगुली का ऊपर वालापोर-स्पर्शकरे)
ॐ मों नमः —दक्षिणानामिकायाम् ( दहिने अँगुठे सेदाहिने हाथ की अनामिका का ऊपरवाला पोर-स्पर्श करे )
ॐ भं नमः —-दक्षिणकनिष्ठिकायाम् (दाहिने अँगुठे सेहाथ की कनिष्ठिका का ऊपर वाला पोर स्पर्शकरे )
ॐ गं नमः —-वामकनिष्ठिकायाम् ( बाँये अँगुठे सेबाँये हाथ की कनिष्ठिका का ऊपर वाला पोरस्पर्श करे )
ॐ वं नमः —-वामानिकायाम् ( बाँये अँगुठे से बाँयेहाँथ की अनामिका का ऊपरवाला पोर स्पर्श करे )
ॐ तें नमः —-वाममध्यमायाम् ( बाँये अँगुठे से बायेहाथ की मध्यमा का ऊपरवाला पोर स्पर्श करे )
ॐ वां नमः —वामतर्जन्याम् ( बाँये अँगुठे से बाँये हाथकी तर्जनी का ऊपरवाला पोर स्पर्श करे )
ॐ सुं नमः —-दक्षिणाङ्गुष्ठोर्ध्वपर्वणि ( दाहिनेहाथ की चारों अँगुलियों से दाहिने हाथ के अँगुठेका ऊपरवाला पोर छुए )
ॐ दें नमः —–दक्षिणाङ्गुष्ठाधः पर्वणि ( दाहिनेहाथ की चारों अँगुलियों से दाहिने हाथ के अँगुठेका नीचे वाला-पोर छुए )
ॐ वां नमः —–वामाङ्गुष्ठोर्ध्वपर्वणि ( बाँये हाथकी चारों अँगुलियों से बाँये अँगुठे के ऊपरवाला पोरछुए )
ॐ यं नमः ——वामाङ्गुष्ठाधः पर्वणि ( बाँये हाथकी चारों अँगुलियों से बाँये हाथ के अँगुठे का नीचेवाला पोर छुए )
विष्णुषडक्षरन्यासः-
ॐ ॐ नमः ————हृदये ( तर्जनी – मध्यमा एवंअनामिका से हृदय का स्पर्श करे )
ॐ विं नमः ————-मूर्ध्नि ( तर्जनी मध्यमा के संयोगसिर का स्पर्श करे )
ॐ षं नमः —————भ्रुर्वोर्मध्ये ( तर्जनी-मध्यमा सेदोनों भौंहों का स्पर्श करे )
ॐ णं नमः —————शिखायाम् ( अँगुठे सेशिखा का स्पर्श करे )
ॐ वें नमः —————नेत्रयोः ( तर्जनी -मध्यमा सेदोनों नेत्रों का स्पर्श करे )
ॐ नं नमः —————सर्वसन्धिषु ( तर्जनी – मध्यमा औरअनामिका से शरीर के सभी जोड़ों — जैसे – कंधा,
घुटना, कोहनी आदि का स्पर्श करे )
ॐ मः अस्त्राय फट् — प्राच्याम् (पूर्व की ओर-चुटकी बजाएँ )
ॐ मः अस्त्राय फट् –आग्नेय्याम् ( अग्निकोण मेंचुटकी बजायें )
ॐ मः अस्त्राय फट् — दक्षिणस्याम् ( दक्षिण की ओरचुटकी बजाएँ )
ॐ मः अस्त्राय फट् — नैऋत्ये (नैऋत्य कोण मेंचुटकी बजाएँ )
ॐ मः अस्त्राय फट् — प्रतीच्याम्( पश्चिम की ओरचुटकी बजाएँ )
ॐ मः अस्त्राय फट् — वायव्ये ( वायुकोण मेंचुटकी बजाएँ )
ॐ मः अस्त्राय फट् — उदीच्याम्( उत्तर की ओरचुटकी बजाएँ )
ॐ मः अस्त्राय फट् — ऐशान्याम् (ईशानकोण मेंचुटकी बजाएँ )
ॐ मः अस्त्राय फट् — ऊर्ध्वायाम् ( ऊपर की ओरचुटकी बजाएँ )
ॐ मः अस्त्राय फट् — अधरायाम् (नीचे की ओरचुटकी बजाएँ )
श्री हरिः---अथ श्रीनारायणकवच
।।राजोवाच।।
यया गुप्तः सहस्त्राक्षः सवाहान् रिपुसैनिकान्।
क्रीडन्निव विनिर्जित्य त्रिलोक्या बुभुजे श्रियम्।।१
भगवंस्तन्ममाख्याहि वर्म नारायणात्मकम्।
यथाssततायिनः शत्रून् येन गुप्तोsजयन्मृधे।।२

राजा परिक्षित ने पूछाः भगवन् ! देवराज इंद्र नेजिससे सुरक्षित होकर शत्रुओंकी चतुरङ्गिणी सेना को खेल-खेल में अनायासहीजीतकर त्रिलोकी की राज लक्ष्मी का उपभोगकिया, आप उस नारायण कवच को सुनाइये और यहभी बतलाईये कि उन्होंने उससे सुरक्षित होकररणभूमि में किस प्रकार आक्रमणकारी शत्रुओं पर विजयप्राप्त की ।।१-२
।।श्रीशुक उवाच।।
वृतः पुरोहितोस्त्वाष्ट्रो महेन्द्रायानुपृच्छते।
नारायणाख्यं वर्माह तदिहैकमनाः शृणु।।३

श्रीशुकदेवजी ने कहाः परीक्षित् ! जब देवताओं नेविश्वरूप को पुरोहित बना लिया, तब देवराज इन्द्र केप्रश्न करने पर विश्वरूप ने नारायण कवच का उपदेशदिया तुम एकाग्रचित्त से उसका श्रवण करो ।।३
विश्वरूप उवाचधौताङ्घ्रिपाणिराचम्य सपवित्र उदङ्मुखः।
कृतस्वाङ्गकरन्यासो मन्त्राभ्यां वाग्यतः शुचिः।।४
नारायणमयं वर्म संनह्येद् भय आगते।
पादयोर्जानुनोरूर्वोरूदरे हृद्यथोरसि।।५
मुखे शिरस्यानुपूर्व्यादोंकारादीनि विन्यसेत्।
ॐ नमो नारायणायेति विपर्ययमथापि वा।।६

विश्वरूप ने कहा – देवराज इन्द्र ! भय का अवसरउपस्थित होने पर नारायण कवच धारण करके अपने शरीरकी रक्षा कर लेनी चाहिए उसकी विधि यह हैकि पहले हाँथ-पैर धोकर आचमन करे, फिर हाथ में कुशकी पवित्री धारण करके उत्तर मुख करके बैठ जाय इसकेबाद कवच धारण पर्यंत और कुछ न बोलने का निश्चय 
करके पवित्रता से “ॐ नमो नारायणाय” और “ॐ
नमो भगवते वासुदेवाय” इन मंत्रों के
द्वारा हृदयादि अङ्गन्यास
तथा अङ्गुष्ठादि करन्यास करे पहले “ॐनमो नारायणाय” इस अष्टाक्षर मन्त्र के ॐ आदि आठ
अक्षरों का क्रमशः पैरों, घुटनों, जाँघों, पेट, हृदय,वक्षःस्थल, मुख और सिर में न्यास करे अथवा पूर्वोक्तमन्त्र के यकार से लेकरॐ कार तक आठ अक्षरों का सिरसे आरम्भ कर उन्हीं आठ अङ्गों में विपरित क्रम से न्यासकरे ।।४-६
करन्यासं ततः कुर्याद् द्वादशाक्षरविद्यया।
प्रणवादियकारन्तमङ्गुल्यङ्गुष्ठपर्वसु।।७

तदनन्तर “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” इस द्वादशाक्षर -मन्त्र के ॐ आदि बारह अक्षरों का दायीं तर्जनी सेबाँयीं तर्जनी तक दोनों हाँथ की आठ अँगुलियों औरदोनों अँगुठों की दो-दो गाठों में न्यास करे।।७
न्यसेद् हृदय ओङ्कारं विकारमनु मूर्धनि।
षकारं तु भ्रुवोर्मध्ये णकारं शिखया दिशेत्।।८
वेकारं नेत्रयोर्युञ्ज्यान्नकारं सर्वसन्धिषु।
मकारमस्त्रमुद्दिश्य मन्त्रमूर्तिर्भवेद् बुधः।।९
सविसर्गं फडन्तं तत् सर्वदिक्षु विनिर्दिशेत्।
ॐ विष्णवे नम इति ।।१०

फिर “ॐ विष्णवे नमः” इस मन्त्र के पहले के पहले अक्षर‘ॐ’ का हृदय में, ‘वि’ का ब्रह्मरन्ध्र , में ‘ष’का भौहों के बीच में, ‘ण’ का चोटी में, ‘वे’का दोनों नेत्रों और ‘न’ का शरीर की सब गाँठों मेंन्यास करे तदनन्तर ‘ॐ मः अस्त्राय फट्’ कहकर दिग्बन्धकरे इस प्रकर न्यास करने से इस विधि को जाननेवाला पुरूष मन्त्रमय हो जाता है ।।८-१०
आत्मानं परमं ध्यायेद ध्येयं षट्शक्तिभिर्युतम्।
विद्यातेजस्तपोमूर्तिमिमं मन्त्रमुदाहरेत ।।११

इसके बाद समग्र ऐश्वर्य, धर्म, यश, लक्ष्मी, ज्ञान औरवैराग्य से परिपूर्ण इष्टदेव भगवान् का ध्यान करे औरअपने को भी तद् रूप ही चिन्तन करे तत्पश्चात् विद्या,तेज, और तपः स्वरूप इस कवच का पाठ करे ।।११
ॐ हरिर्विदध्यान्ममसर्वरक्षां न्यस्ताङ्घ्रिपद्मः पतगेन्द्रपृष्ठे।
दरारिचर्मासिगदेषुचापाशान्दधानोsष्टगुणोsष्टबाहुः ।।१२

भगवान् श्रीहरि गरूड़जी के पीठ पर अपने चरणकमल रखेहुए हैं, अणिमा आदि आठों सिद्धियाँ उनकी सेवा कररही हैं आठ हाँथों में शंख, चक्र, ढाल, तलवार, गदा,बाण, धनुष, और पाश (फंदा) धारण किए हुए हैं वेही ओंकार स्वरूप प्रभु सब प्रकार से सब ओर सेमेरी रक्षा करें।।१२
जलेषु मां रक्षतु मत्स्यमूर्तिर्यादोगणेभ्यो वरूणस्यपाशात्।
स्थलेषु मायावटुवामनोsव्यात् त्रिविक्रमः खेऽवतुविश्वरूपः ।।१३

मत्स्यमूर्ति भगवान् जल के भीतर जलजंतुओं से और वरूण केपाश से मेरी रक्षा करें माया से ब्रह्मचारी रूप धारणकरने वाले वामन भगवान् स्थल पर और विश्वरूपश्री त्रिविक्रमभगवान् आकाश में मेरी रक्षा करें 13
दुर्गेष्वटव्याजिमुखादिषुप्रभुः पायान्नृसिंहोऽसुरयुथपारिः।
विमुञ्चतो यस्य महाट्टहासं दिशो विनेदुर्न्यपतंश्चगर्भाः ।।१४
जिनके घोर अट्टहास करने पर सब दिशाएँ गूँज-उठी थीं और गर्भवती दैत्यपत्नियों के गर्भ गिर गये थे,वे दैत्ययुथपतियों के शत्रु भगवान् नृसिंह किले, जंगल,रणभूमि आदि विकट स्थानों में मेरी रक्षा करें ।।१४
रक्षत्वसौ माध्वनि यज्ञकल्पः स्वदंष्ट्रयोन्नीतधरोवराहः।
रामोऽद्रिकूटेष्वथ विप्रवासे सलक्ष्मणोsव्याद्भरताग्रजोsस्मान् ।।१५

अपनी दाढ़ों पर पृथ्वी को उठा लेने वालेयज्ञमूर्ति वराह भगवान् मार्ग में, परशुरामजी पर्वतों के शिखरों और लक्ष्मणजी के सहित भरत केबड़े भाई भगावन् रामचंद्र प्रवास के समय मेरी रक्षा करें।।१५
मामुग्रधर्मादखिलात् प्रमादान्नारायणः पातु नरश्चहासात्।
दत्तस्त्वयोगादथ योगनाथः पायाद्गुणेशः कपिलः कर्मबन्धात् ।।१६
भगवान् नारायण मारण – मोहन आदि भयंकरअभिचारों और सब प्रकार के प्रमादों सेमेरी रक्षा करें ऋषिश्रेष्ठ नर गर्व से, योगेश्वर भगवान्दत्तात्रेय योग के विघ्नों से औरत्रिगुणाधिपति भगवान् कपिल कर्मबन्धन सेमेरी रक्षा करें ।।१६
सनत्कुमारो वतुकामदेवाद्धयशीर्षा मां पथि देवहेलनात्।
देवर्षिवर्यः पुरूषार्चनान्तरात्कूर्मो हरिर्मां निरयादशेषात् ।।१७
परमर्षि सनत्कुमार कामदेव से, हयग्रीव भगवान् मार्ग मेंचलते समय देवमूर्तियों को नमस्कार आदि न करने केअपराध से, देवर्षि नारद सेवापराधों से और भगवान्कच्छप सब प्रकार के नरकों से मेरी रक्षा करें ।।१७
धन्वन्तरिर्भगवान् पात्वपथ्याद् द्वन्द्वाद्भयादृषभो निर्जितात्मा।
यज्ञश्च लोकादवताज्जनान्ताद् बलो गणात्क्रोधवशादहीन्द्रः ।।१८
भगवान् धन्वन्तरि कुपथ्य से, जितेन्द्र भगवान् ऋषभदेवसुख-दुःख आदि भयदायक द्वन्द्वों से, यज्ञ भगवान्लोकापवाद से, बलरामजी मनुष्यकृत कष्टों से औरश्रीशेषजी क्रोधवशनामक सर्पों के गणों सेमेरी रक्षा करें ।।१८
द्वैपायनो भगवानप्रबोधाद् बुद्धस्तु पाखण्डगणात्प्रमादात्।
कल्किः कले कालमलात् प्रपातुधर्मावनायोरूकृतावतारः ।।१९
भगवान् श्रीकृष्णद्वेपायन व्यासजी अज्ञान सेतथा बुद्धदेव पाखण्डियों से और प्रमाद सेमेरी रक्षा करें धर्म-रक्षा करने वाले महान अवतारधारण करने वाले भगवान् कल्कि पाप-बहुल कलिकाल केदोषों से मेरी रक्षा करें ।।१९
मां केशवो गदया प्रातरव्याद् गोविन्दआसङ्गवमात्तवेणुः।
नारायण प्राह्ण उदात्तशक्तिर्मध्यन्दिनेविष्णुररीन्द्रपाणिः ।।२०
प्रातःकाल भगवान् केशव अपनी गदा लेकर, कुछ दिनचढ़ जाने पर भगवान् गोविन्द अपनी बांसुरी लेकर,दोपहर के पहले भगवान् नारायण अपनी तीक्ष्णशक्ति लेकर और दोपहर को भगवान् विष्णु चक्रराजसुदर्शन लेकर मेरी रक्षा करें ।।२०
देवोsपराह्णे मधुहोग्रधन्वा सायं त्रिधामावतुमाधवो माम्।
दोषे हृषीकेश उतार्धरात्रे निशीथ एकोsवतुपद्मनाभः ।।२१
तीसरे पहर में भगवान् मधुसूदन अपना प्रचण्ड धनुष लेकरमेरी रक्षा करें सांयकाल मेंब्रह्मा आदि त्रिमूर्तिधारी माधव, सूर्यास्त के बादहृषिकेश, अर्धरात्रि के पूर्व तथा अर्ध रात्रि के समयअकेले भगवान् पद्मनाभ मेरी रक्षा करें ।।२१
श्रीवत्सधामापररात्र ईशः प्रत्यूषईशोऽसिधरो जनार्दनः।
दामोदरोऽव्यादनुसन्ध्यं प्रभाते विश्वेश्वरो भगवान्कालमूर्तिः ।।२२
रात्रि के पिछले प्रहर में श्रीवत्सलाञ्छन श्रीहरि,उषाकाल में खड्गधारी भगवान् जनार्दन, सूर्योदय सेपूर्व श्रीदामोदर और सम्पूर्ण सन्ध्याओं मेंकालमूर्ति भगवान् विश्वेश्वर मेरी रक्षा करें ।।२२
चक्रं युगान्तानलतिग्मनेमि भ्रमत् समन्ताद्भगवत्प्रयुक्तम्।
दन्दग्धि दन्दग्ध्यरिसैन्यमासु कक्षंयथा वातसखो हुताशः ।।२३
सुदर्शन ! आपका आकार चक्र ( रथ के पहिये ) की तरह हैआपके किनारे का भाग प्रलयकालीन अग्नि के समानअत्यन्त तीव्रहै। आप भगवान् की प्रेरणा से सब ओर घूमतेरहते हैं जैसे आग वायु की सहायता से सूखे घास-फूसको जला डालती है, वैसे ही आपहमारी शत्रुसेना को शीघ्र से शीघ्र जला दीजिये,जला दीजिये ।।२३
गदेऽशनिस्पर्शनविस्फुलिङ्गेनिष्पिण्ढि निष्पिण्ढ्यजितप्रियासि।
कूष्माण्डवैनायकयक्षरक्षोभूतग्रहांश्चूर्णय चूर्णयारीन्।।२४
कौमुद की गदा ! आपसे छूटनेवाली चिनगारियों का स्पर्श वज्र के समान असह्य हैआप भगवान् अजित की प्रिया हैं और मैं उनका सेवक हूँइसलिए आप कूष्माण्ड, विनायक, यक्ष, राक्षस, भूत औरप्रेतादि ग्रहों को अभी कुचल डालिये, कुचल डालिये=तथा मेरे शत्रुओं को चूर – चूर कर दिजिये ।।२४
त्वं यातुधानप्रमथप्रेतमातृपिशाचविप्रग्रहघोरदृष्टीन्।दरेन्द्र विद्रावय
कृष्णपूरितो भीमस्वनोऽरेर्हृदयानि कम्पयन् ।।२५
शङ्खश्रेष्ठ ! आप भगवान् श्रीकृष्ण के फूँकने से भयंकर शब्दकरके मेरे शत्रुओं का दिल दहला दीजिये एवं यातुधान,प्रमथ, प्रेत, मातृका, पिशाच तथा ब्रह्मराक्षसआदि भयावने प्राणियों को यहाँ से तुरन्तभगा दीजिये ।।२५
त्वं तिग्मधारासिवरारिसैन्यमीशप्रयुक्तो ममछिन्धि छिन्धि।
चर्मञ्छतचन्द्र छादय द्विषामघोनां हर पापचक्षुषाम्२६
भगवान् की श्रेष्ठ तलवार ! आपकी धार बहुत तीक्ष्ण हैआप भगवान् की प्रेरणा से मेरे शत्रुओं को छिन्न-भिन्नकर दिजिये।भगवान् की प्यारी ढाल ! आपमेंसैकड़ों चन्द्राकार मण्डल हैं आपपापदृष्टि पापात्मा शत्रुओं की आँखे बन्द कर दिजियेऔर उन्हें सदा के लिये अन्धा बना दीजिये ।।२६
यन्नो भयं ग्रहेभ्यो भूत् केतुभ्यो नृभ्य एव च।
सरीसृपेभ्यो दंष्ट्रिभ्यो भूतेभ्योंऽहोभ्य एव वा ।।२७
सर्वाण्येतानि भगन्नामरूपास्त्रकीर्तनात्।
प्रयान्तु संक्षयं सद्यो ये नः श्रेयः प्रतीपकाः ।।२८
सूर्य आदि ग्रह, धूमकेतु (पुच्छल तारे ) आदि केतु, दुष्टमनुष्य, सर्पादि रेंगने वाले जन्तु, दाढ़ोंवाले हिंसक पशु,भूत-प्रेत आदि तथा पापी प्राणियों से हमें जो-जो भय हो और जो हमारे मङ्गल के विरोधी हों – वेसभी भगावान् के नाम, रूप तथा आयुधों का कीर्तनकरने से तत्काल नष्ट हो जायें ।।२७-२८
गरूड़ो भगवान् स्तोत्रस्तोभश्छन्दोमयः प्रभुः।
रक्षत्वशेषकृच्छ्रेभ्यो विष्वक्सेनः स्वनामभिः ।।२९
बृहद्, रथन्तर आदि सामवेदीय स्तोत्रों सेजिनकी स्तुति की जाती है, वे वेदमूर्ति भगवान् गरूड़और विष्वक्सेनजी अपने नामोच्चारण के प्रभाव से हमेंसब प्रकार की विपत्तियों से बचायें।।२९
सर्वापद्भ्यो हरेर्नामरूपयानायुधानि नः।
बुद्धिन्द्रियमनः प्राणान् पान्तु पार्षदभूषणाः ।।३०
श्रीहरि के नाम, रूप, वाहन, आयुध और श्रेष्ठ पार्षदहमारी बुद्धि , इन्द्रिय , मन और प्राणों को सबप्रकार की आपत्तियों से बचायें।।३०
यथा हि भगवानेव वस्तुतः सद्सच्च यत्।
सत्यनानेन नः सर्वे यान्तु नाशमुपाद्रवाः ।।३१
जितना भी कार्य अथवा कारण रूप जगत है, वह वास्तवमें भगवान् ही है इस सत्य के प्रभाव से हमारे सारे उपद्रवनष्ट हो जायें।।३१
यथैकात्म्यानुभावानां विकल्परहितः स्वयम्।
भूषणायुद्धलिङ्गाख्या धत्ते शक्तीः स्वमायया ।।३२
तेनैव सत्यमानेन सर्वज्ञो भगवान् हरिः।
पातु सर्वैः स्वरूपैर्नः सदा सर्वत्र सर्वगः ।।३३
जो लोग ब्रह्म और आत्मा की एकता का अनुभव कर चुकेहैं, उनकी दृष्टि में भगवान् का स्वरूप समस्त विकल्पों सेरहित है-भेदों से रहित हैं फिर भी वेअपनी माया शक्ति के द्वारा भूषण, आयुध और रूपनामक शक्तियों को धारण करते हैं यह बात निश्चित=रूप से सत्य है इस कारण सर्वज्ञ, सर्वव्यापक भगवान्श्रीहरि सदा -सर्वत्र सब स्वरूपों से हमारी रक्षा करें।।३२-३३
विदिक्षु दिक्षूर्ध्वमधः समन्तादन्तर्बहिर्भगवान्नारसिंहः।
प्रहापयँल्लोकभयं स्वनेन ग्रस्तसमस्ततेजाः ।।३४जो अपने भयंकर अट्टहास से सब लोगों के भयको भगा देते हैं और अपनेतेज से सबका तेज ग्रस लेते हैं, वेभगवान् नृसिंह दिशा -विदिशा में, नीचे -ऊपर, बाहर-भीतर – सब ओर से हमारी रक्षा करें ।।३४
मघवन्निदमाख्यातं वर्म नारयणात्मकम्।
विजेष्यस्यञ्जसा येन दंशितोऽसुरयूथपान् ।।३५
देवराज इन्द्र ! मैने तुम्हें यह नारायण कवच सुना दिया हैइस कवच से तुम अपने को सुरक्षित कर लो बस, फिर तुमअनायास ही सब दैत्य – यूथपतियों को जीत करलोगे ।।३५
एतद् धारयमाणस्तु यं यं पश्यति चक्षुषा।
पदा वा संस्पृशेत् सद्यः साध्वसात् स विमुच्यते ।।३६
इस नारायण कवच को धारण करने वाला पुरूषजिसको भी अपने नेत्रों से देख लेता है अथवा पैर से छूदेता है, तत्काल समस्त भयों से से मुक्त हो जाता है 36
न कुतश्चित भयं तस्य विद्यां धारयतो भवेत्।
राजदस्युग्रहादिभ्यो व्याघ्रादिभ्यश्च कर्हिचित् ।।३७
जो इस वैष्णवी विद्या को धारण कर लेता है, उसेराजा, डाकू, प्रेत, पिशाच आदि और बाघआदि हिंसक जीवों से कभी किसी प्रकार का भयनहीं होता ।।३७
इमां विद्यां पुरा कश्चित् कौशिको धारयन्द्विजः।
योगधारणया स्वाङ्गं जहौ स मरूधन्वनि ।।३८
देवराज! प्राचीनकाल की बात है, एक कौशिकगोत्री ब्राह्मण ने इस विद्या को धारण करकेयोगधारणा से अपना शरीर मरूभूमि में त्याग दिया ।।३८
तस्योपरि विमानेन गन्धर्वपतिरेकदा।
ययौ चित्ररथः स्त्रीर्भिवृतो यत्र द्विजक्षयः ।।३९
जहाँ उस ब्राह्मण का शरीर पड़ा था, उसके उपर से एकदिन गन्धर्वराज चित्ररथ अपनी स्त्रियों के साथविमान पर बैठ कर निकले।।३९
गगनान्न्यपतत् सद्यः सविमानो ह्यवाक् शिराः।
स वालखिल्यवचनादस्थीन्यादाय विस्मितः।
प्रास्य प्राचीसरस्वत्यां स्नात्वा धाम स्वमन्वगात् ।।४०
वहाँ आते ही वे नीचे की ओर सिर किये विमान सहितआकाश से पृथ्वी पर गिर पड़े इस घटना से उनके आश्चर्यकी सीमा न रही जब उन्हें बालखिल्य मुनियों नेबतलाया कि यह नारायण कवच धारण करनेका प्रभाव है, तब उन्होंने उस ब्राह्मण देव=की हड्डियों को ले जाकर\\\पूर्ववाहिनी सरस्वती नदी में प्रवाहित कर दिया औरफिर स्नान करके वे अपने लोक को चले गये ।।४०
।।श्रीशुक उवाच।।
य इदं शृणुयात् काले यो धारयति चादृतः।
तं नमस्यन्ति भूतानि मुच्यते सर्वतो भयात् ।।४१
श्रीशुकदेवजी कहते हैं – परिक्षित् जो पुरूष इस
नारायण कवच को समय पर सुनता है और जो आदर पूर्वकइसे धारण करता है, उसके सामने सभी प्राणी आदर सेझुक जाते हैं और वह सब प्रकार के भयों से मुक्तहो जाता है ।।४१
एतां विद्यामधिगतो विश्वरूपाच्छतक्रतुः।
त्रैलोक्यलक्ष्मीं बुभुजे विनिर्जित्यऽमृधेसुरान् ।।४२
परीक्षित् ! शतक्रतु इन्द्र ने आचार्य विश्वरूपजी से यहवैष्णवी विद्या प्राप्त करके रणभूमि मेंअसुरों को जीत लिया और वे
त्रैलोक्यलक्ष्मी का उपभोग करने लगे 42
।।इति श्रीनारायणकवचं सम्पूर्णम्।।
( श्रीमद्भागवत स्कन्ध 6 , अ। 8 )

सोमवार, 10 नवंबर 2014

"षोडशोपचार पूजन" में निम्न सोलह तरीके से विधिपूर्वक पूजन किया जाता है-

"षोडशोपचार पूजन" में निम्न सोलह तरीके से विधिपूर्वक पूजन किया जाता है-

1. ध्यान-आवाहन-

मन्त्रों और भाव द्वारा भगवान का ध्यान किया जाता है..
आवाहन का अर्थ है-
पास लाना..
ईष्ट देवता को अपने सम्मुख या पास लाने के लिए आवाहन किया जाता है..
उनसे निवेदन किया जाता है कि वे हमारे सामने हमारे पास आएँ, इसमें भाव यह होता है कि वह हमारे ईष्ट देवता की मूर्ति में वास करें, तथा हमें आत्मिक बल एवं आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करें, ताकि हम उनका आदरपूर्वक सत्कार करें..
जिस प्रकार मनोवांछित मेहमान या मित्र को अपने यहां आया देखकर आनंद/प्रसन्नता होती है..

2. आसन..

3. पाद्य- पाद्यं, अर्घ्य-
दोनों ही सम्मान सूचक है..
ऐसा भाव करना है कि भगवान के प्रकट होने पर उनके हाथ-पाँव धुलाकर आचमन कराकर स्नान कराते हैं..

4. अर्घ्य-

अर्घ्य के विषय में पाद्य में बता दिया गया है..

5. आचमन-
आचमन यानी मन, कर्म और वचन से शुद्धि..
आचमन का अर्थ है-
अंजुलि मे जल लेकर पीना,
यह शुद्धि के लिए किया जाता है..
आचमन तीन बार किया जाता है,
इससे मन की शुद्धि होती है..

6. स्नान-

ईश्वर को शुद्ध जल से स्नान कराया जाता है..
एक तरह से यह ईश्वर का स्वागत सत्कार होता है..
जल से स्नान के उपरांत भगवान को पंचामृत स्नान कराया जाता है..
7. वस्त्र-
ईश्वर को स्नान के बाद वस्त्र चढ़ाये जाते हैं,
ऐसा भाव रखा जाता है कि हम ईश्वर को अपने हाथों से वस्त्र अर्पण कर रहे हैं या पहना रहे है, यह ईश्वर की सेवा है..

8. यज्ञोपवीत-
यज्ञोपवीत का अर्थ जनेऊ होता है..
यह भगवान को समर्पित किया जाता है,
यह देवी को अर्पण नहीं किया जाता है..

9. गंधाक्षत-
रोली, हल्दी,चन्दन, अबीर, गुलाल, अक्षत (अखंडित चावल)

10. पुष्प-
फूल माला (जिस ईश्वर का पूजन हो रहा है उसके पसंद के फूल और उसकी माला)

11. धूप-
धूपबत्ती..

12. दीप-
दीपक (शुद्ध घी का इस्तेमाल करें)

13. नैवेद्य-
भगवान को मिष्ठान का भोग लगाया जाता है..

14.ताम्बूल, दक्षिणा, जल -आरती-
ताम्बूल का मतलब पान है..
यह महत्वपूर्ण पूजन सामग्री है..
फल के बाद ताम्बूल समर्पित किया जाता है..
ताम्बूल के साथ में पुंगी फल (सुपारी), लौंग और इलायची भी डाली जाती है..
दक्षिणा अर्थात् द्रव्य समर्पित किया जाता है..
भगवान भाव के भूखे हैं, अत: उन्हें द्रव्य से कोई लेना-देना नहीं है..
द्रव्य के रूप में रुपए, स्वर्ण ,चांदी, कुछ भी अर्पित किया जा सकता है..

आरती, पूजा के अंत में धूप, दीप, कपूर से की जाती है..
इसके बिना पूजा अधूरी मानी जाती है..
आरती में एक, तीन, पांच, सात यानि विषम बत्तियों वाला दीपक प्रयोग किया जाता है..
आरती चार प्रकार की होती है :–दीपआरती- जलआरती- धूप, कपूर, अगरबत्ती से आरती- पुष्प आरती..

15. मंत्र पुष्पांजलि-
मंत्र पुष्पांजली मंत्रों द्वारा हाथों में फूल लेकर भगवान को पुष्प समर्पित किए जाते हैं तथा प्रार्थना की जाती है..
भाव यह है कि इन पुष्पों की सुगंध की तरह हमारा यश सब तरफ फैले तथा हम प्रसन्नता पूर्वक जीवन बिताएं..

16. प्रदक्षिणा-
नमस्कार, स्तुति-
प्रदक्षिणा का अर्थ है परिक्रमा..
आरती के उपरांत भगवान की परिक्रमा की जाती है, परिक्रमा हमेशा क्लॉक वाइज (clock-wise) करनी चाहिए..
स्तुति में क्षमा प्रार्थना करते हैं,
क्षमा मांगने का आशय है कि हमसे कुछ भूल, गलती हो गई हो तो आप हमारे अपराध को क्षमा करें..

===पूजा साधना में विशेष रूप से ध्यान रखें ये बातें...

== पूजा पाठ व अन्य धार्मिक कार्यों के लिए कुछ नियम या सावधानियां हे जिससे हमें अधिकाधिक लाभ मिले इस हेतु हमे पूर्ववर्ती आचार्यों ने कुछ नियम बनाये हे , यह नियम सभी प्रायः जानते हे और अनोको लोगो ने इसको पोस्ट भी किया हे , हम भी इन नियमों से लाभ उठा ये
 ===पूजा साधना में विशेष रूप से ध्यान रखें ये बातें........
.. पूजा साधना करते समय बहुत सी ऐसी बातें हैं जिन पर सामान्यतः हमारा ध्या न नही जाता है लेकिन पूजा साधना की द्रष्टि से ये बातें अति महत्वपूर्ण हैं |
 1. गणेशजी को तुलसी का पत्र छोड़कर सब पत्र प्रिय हैं | भैरव की पूजा में तुलसी का ग्रहण नही है|
 2. कुंद का पुष्प शिव को माघ महीने को छोडकर निषेध है |
 3. बिना स्नान किये जो तुलसी पत्र जो तोड़ता है उसे देवता स्वीकार नही करते |
 4. रविवार को दूर्वा नही तोडनी चाहिए |
 5. केतकी पुष्प शिव को नही चढ़ाना चाहिए |
6. केतकी पुष्प से कार्तिक माह में विष्णु की पूजा अवश्य करें
 7. देवताओं के सामने प्रज्जवलित दीप को बुझाना नही चाहिए 
 8. शालिग्राम का आवाह्न तथा विसर्जन नही होता 
 9. जो मूर्ति स्थापित हो उसमे आवाहन और विसर्जन नही होता |
 10. तुलसीपत्र को मध्याहोंन्त्तर ग्रहण न करें |
 11. पूजा करते समय यदि गुरुदेव ,ज्येष्ठ व्यक्ति या पूज्य व्यक्ति आ जाए तो उनको उठ कर प्रणाम कर उनकी आज्ञा से शेष कर्म को समाप्त करें |
 12. मिट्टी की मूर्ति का आवाहन और विसर्जन होता है और अंत में शास्त्रीयविधि से गंगा प्रवाह भी किया जाता है | 
13. कमल को पांच रात ,बिल्वपत्र को दस रात और तुलसी को ग्यारह रात बाद शुद्ध करके पूजन के कार्य में लिया जा सकता है |
 14. पंचामृत में यदि सब वस्तु प्राप्त न हो सके तो केवल दुग्ध से स्नान कराने मात्र से पंचामृतजन्य फल जाता है |
 15. शालिग्राम पर अक्षत नही चढ़ता | लाल रंग मिश्रित चावल चढ़ाया जा सकता है |
 16. हाथ में धारण किये पुष्प , तांबे के पात्र में चन्दन और चर्म पात्र में गंगाजल अपवित्र हो जाते हैं |
 17. पिघला हुआ घृत और पतला चन्दन नही चढ़ाना चाहिए |
 18. दीपक से दीपक को जलाने से प्राणी दरिद्र और रोगी होता है | दक्षिणाभिमुख दीपक को न रखे | देवी के बाएं और दाहिने दीपक रखें | दीपक से अगरबत्ती जलाना भी दरिद्रता का कारक होता है |
 19. द्वादशी , संक्रांति , रविवार , पक्षान्त और संध्याकाळ में तुलसीपत्र न तोड़ें |
 20. प्रतिदिन की पूजा में सफलता के लिए दक्षिणा अवश्य चढाएं |
 21. आसन , शयन , दान , भोजन , वस्त्र संग्रह , ,विवाद और विवाह के समयों पर छींक शुभ मानी गयी है |
 22. जो मलिन वस्त्र पहनकर , मूषक आदि के काटे वस्त्र , केशादि बाल कर्तन युक्त और मुख दुर्गन्ध युक्त हो, जप आदि करता है उसे देवता नाश कर देते हैं |
 23. मिट्टी , गोबर को निशा में और प्रदोषकाल में गोमूत्र को ग्रहण न करें |
 24. स्त्री और शूद्र के शंख ध्वनि करने से मात्र रुष्ट और भयान्वित हो लक्ष्मी वहां से हट जाती है |
 25. पीपल को नित्य नमस्कार पूर्वाह्न के पश्चात् दोपहर में ही करना चाहिए | इसके बाद न करें |
 26. जहाँ अपूज्यों की पूजा होती है और विद्वानों का अनादर होता है , उस स्थान पर दुर्भिक्ष , मरण , और भय उत्पन्न होता है |
 27. पौष मास की शुक्ल दशमी तिथि , चैत्र की शुक्ल पंचमी और श्रावण की पूर्णिमा तिथि को लक्ष्मी प्राप्ति के लिए लक्ष्मी का पूजन करें |
 28. कृष्णपक्ष में , रिक्तिका तिथि में , श्रवणादी नक्षत्र में लक्ष्मी की पूजा न करें | . मंडप के नव भाग होते हैं , वे सब बराबर-बराबर के होते हैं अर्थात् मंडप सब तरफ सबीे चतुरासन होता है | अर्थात् टेढ़ा नही होता | जिस कुंड की श्रृंगार द्वारा रचना नही होती वह यजमान का नाश करता है |

सोमवार, 20 अक्तूबर 2014

= devenrdr fadanvish -श्री देवेन्द्र फ़ड़नवीश === वर्तमान भाजपा प्रदेशाध्यक्ष \\ maharastra

==== devenrdr fadanvish -श्री देवेन्द्र फ़ड़नवीश === वर्तमान भाजपा प्रदेशाध्यक्ष \\ maharastra

yah post 6- aktumbar ko likhi gayi thi == or bhi sbhi netavo ki old post dekhiyega or jyotish shastr ko jane 
स्वामी आनंद शिव मेहता

October 6 · · 
======= maharastr == mukhyamantri pad ki dod me sabse aage he aabhi aap
=== श्री देवेन्द्र फ़ड़नवीश === वर्तमान भाजपा प्रदेशाध्यक्ष \\
===== जन्म = 22 =जुलाई ==1970 == नागपुर महाराष्ट्र \\

===आपके लिए यह समय उत्तम हे == आपके नेतृत्व को सराहना मिलेगी == आत्मा के कारक शनि की स्थिति के कारण कुछ पुराने राजनैतिक लोगो से दुविधा हे \\
==== आपके मुख्यमंत्री बनने में भी दिक्क़ते हे == अंतिम समय में कुछ फेरबदल से समझोते से = आपको २=४ होना होगा \ वर्तमान में आपको इस युति के भंग होने का लाभ उठाना चाहिए ,
==== आपकी योग्यता का परचम सराहा जायेगा \\\ आशानुकूल परिणाम में संदेह हे \\ प्रयास बहुत ही ज्यादा करने की आवश्यकता हे \\ बदलाव तो होगा \\ यह एकतरफा नही होने से दुविधा हे \\

रविवार, 12 अक्तूबर 2014

==== देश सोने की चिड़ियाँ था === जब चिड़ियाँ जैसा दीखता था

==== देश  सोने की चिड़ियाँ था === जब चिड़ियाँ जैसा दीखता था = अब ..हाथ फैलाएं ..? 
===== वक्त आने को हे जब हम अपने भूगोल को सुधारें == उन्नति की और बड़े \\
---यदि हम जैसलमेर से बाड़मेर होकर भुंज तक जो भाग राजस्थन - गुजरात की सीमा के अन्दर पाकिस्तान का आता हे , जो इधर घुसा हुवा हे , उसको एक सीध में ले ले याने की , संघार ,मीरपुर खास ,शेख भीर्यखियों , बदीन, तक का क्षेत्र अपनी सीमा में मिला ले , तो उसका बार बार का विवाद करना ही समाप्त हो जायेगा , याने की उसके हैदराबाद प्रान्त का पश्चिमी हिस्सा \\ और हमारे देश के वास्तु के साथ उनका वास्तु भी सुधर जायेगा \\
-- १८७६ के अफगानिस्तान के विभाजन से लेकर  १९६२ के अक्षय सियाचिन के चीन पर कब्जे के साथ आज तक १० बार देश की सीमायें और हमारा भूगोल बदला जा चूका हे , सोने की चिड़ियाँ से , एक बाहें फहलाएं व्यक्ति की तरह से खड़ा दिखाई देने लगा हे ,पूर्वोत्तर और सम्पूर्ण पश्चिमोत्तर बदल चूका हे , दक्षिण में केवल श्रीलंका ही बदला हे , यु भी वह चिड़ियाँ के अंडें की भांति था जो की आज दूर हे , \

शुक्रवार, 10 अक्तूबर 2014

--- भारतीय राजनीतिज्ञ और राजनीती ---- क्या और क्यों

--- भारतीय राजनीतिज्ञ और राजनीती ---- क्या और क्यों
---- अधिकतर राजनेता अभी तक शनि प्रधान ही हुवे , उन्होंने राजनीती कूटनीति से , अपनी सेटिंग से , अपनी समझोता वादी नीति से आगे बड़ाई , वह सभी शनि गन प्रधान थे , उनका काम शाशन करना ही था , सभी की बातों में ओजस्विता कभी रही नही \\
----- श्री मोदी जी पहलीबार मंगल प्रधान व्यक्ति प्रधानमंत्री बने हे , आपकी वाणी में ओजस्विता हे , वह दीनता की भाषा नही बोलते हे , वह ऊर्जावान और प्रेरणादायक बातें करते हे , सभी को काम करने का और एक युवा की भाँती दौड़ने का आगे जाने का कहते हे , यह ही मंगल की प्रधानता हे \\ यह ही श्री मोदी जी की शक्ति हे , सामर्थ्य हे , वाणी की ओजस्विता श्रेष्ठतम नेतृत्व प्रदान करती हे \\
----- कांग्रेश का दुर्भाग्य हे की उसके अनेको नेता शनि प्रधान हे , कोई भी मंगल प्रधान नजर नहीं आता हे , अगर इनके पास कोई भी नेता मंगल प्रधान होता तो यह परिद्रस्य आज नही होता \\
----- श्री केजरीवाल जी से सभी को आशा थी किन्तु वह राहु प्रधान थे , हर बात में , उस बात की कमी जो भी रही हो वह तत्काल पकड़ते और सामने लाते थे , अति उत्साह , आधार हीनता , राहु का आधार नही होता हे वह ऊपर ऊपर ही दिखाई  देता हे , यही उनके साथ हुवा वह समय को , समझ नही पाये और - युग परिवर्तन हो गया बदलाव आ गया \\\
------ अभी के चुनावों में भी श्री मोदी जी की सफलता का परचम लहराने को हे \\
------ ज्योतिष किसी पार्टी विशेष का नही होता , यह ग्रहों से होता हे , उस अनुसार ही चलता हे , मेरे कहने और लिखने से कुछ नही होता हे , हम तो तटस्थ हे , और यह किसी को अछा लगता हे और किसी को लिखा बुरा , भी लगता हे , और यह भी सत्य हे की सभी को सभी बाटे पसंद नही आती  हे और न ही आप सभी को एक साथ खुश रख सकते हो == अनेको यह भी कहते हे की मौका देखकर चोका लगाया हे , उनसे हमारा यही निवेदन हे की इस प्रकार की पोस्ट फरवरी माह से लगातार लिखी जाती रही हे पुरानी पोस्टो को पड़ने की कृपा करें , जो चुनाव पूर्व से हे और चुनाव मध्य और चुनावी भी हे सभी पार्टियों की , और विजयी श्री की भी \\ और यह पोस्ट अनेको बड़े नेतावों को भी पोस्ट की जाती रही हे \\

=== sheyar bajar or sona chandee

=== sheyar bajar or sona chandee 
=== ओम श्री गणेशाय नमः == द्वितीयां = 10 =10  = 2014  -----आज का  शुभ अंक = 3 -5 -8
====== बाजार में ऊपर . नीचे होने का समय == 10  .40   == 12 . 30  == 2 .20  ==
=== सेंसेक्स = 26500  से 26750 = ----- 7 शेषन में 1000  गिरने की स्थिति यथावत यह भी संभव की यह 27100 तक ऊपर इन आने वाले 4  शेषन में चढ़े फिर गिरे और 26300  वापस आने वाले सप्ताहांत में आये 
=== सोना 26800  से 27100   ==== बाजार बदलाव का समय दोपहर 11 = 30  = बाद में 5 .10  
=== चांदी = 38500  से 39100 ==
=== क्रूड == 5150  से 5200  ===== अपनी जिम्मेदारी पर ही कार्य करे == हमारी कोई जिम्मेदारी नही हे \\
===== 0  99  260  -770  10  

सोमवार, 6 अक्तूबर 2014

mantr dosh ka nivaran

=== truant = mantr dosh ka nivaran == yah tinon alag alag he 
==== बाधा निवारण धुप == किसी प्रकार की रूकावट व्यापर स्थल पर हे तो इसकी धुनि देने से वह दोष हैट जाता हे \\==== नजर दोष निवारण धुप = बार बार नजर लगने से = इस धुप की धुनि से बच्चो और बड़ो को लगी नजर दूर हो जाती हे , कभी कभी घर में असमय विवाद होता हे उसका भी निवारण इस धुप से होता हे \\==== डिप्रेशन निवारण धुप == यह आज की भाषा हे हम इसको , प्रेत बाधा या , बहुत पालित का साया कहते हे , इससे ग्रसित व्यक्ति बहुत ही ज्यादा परेशान रहता हे , वह कुछ भी ठीक से कर नही पता हे , उसको समझ नही पड़ती हे , कभी कभी आपसी के जलने वाले भी कुछ कर देते हे , इस कारण भी तकलीफ होती हे , इस धुप की धुनि से इसमें कमी आती हे \ रोगी शांत रहता हे \\
===== यह सभी धुप 40 =50 ग्राम की पेक हे , मूल्य 250 रु प्रत्येक , पैसा मिलने पर कोरियर कर देते हे , मंगवाने के पहले एक बार बात आवस्य ही कर ले , अलग अलग समस्यावो के लिए अलग अलग ओषधियों का मिश्रण तैयार किया जाता हे , यह पूर्णतः पवित्र हे और वनस्पतियों ओषदीयों का मिश्रण चूर्ण रूप में हे \\ जिन्हे देवता आते हो वह , डिप्रेशन धुप का प्रयोग नही करें , देवता आना बंद हो जायेंगे या आने पर नाराज होंगे \\
=099260 ==77010
===== यह सभी धुप 40 =50 ग्राम की पेक हे , मूल्य 250 रु प्रत्येक , पैसा मिलने पर कोरियर कर देते हे , मंगवाने के पहले एक बार बात आवस्य ही कर ले , अलग अलग समस्यावो के लिए अलग अलग ओषधियों का मिश्रण तैयार किया जाता हे , यह पूर्णतः पवित्र हे और वनस्पतियों ओषदीयों का मिश्रण चूर्ण रूप में हे \\ जिन्हे देवता आते हो वह , डिप्रेशन धुप का प्रयोग नही करें , देवता आना बंद हो जायेंगे या आने पर नाराज होंगे \\=099260 ==77010

सोमवार, 22 सितंबर 2014

  shiv pujan ,nshamukti , shukh - shanti 
      You, your child or any other family, your spouse = brother = none too much lust gets involved in the family and not paying attention or sitting peso everything mind, you can always read him the path The saying \ mindset will change in a few days I tried using == O \ \ 
  shiv pujan, nshamukti, shukh - shanti 
    shiv pujan ,nshamukti , shukh - shanti oo much lust gets involved in the family and not paying attention or sitting peso everything mind, you can always read him the path The saying \ mindset will change in a few days I tried using == O \ \

 Nirwanrupan Nmamishmishan. Vibhun Wyapkan
Vedswrupan Brahman.
Nijn Niguarnn Nirihn Nirvikalpan.
Chidakashmakashwasn Bjehn .. 1 ..
Turiyn निराकारमोंकालमूलं. Giragyan
Girishn Gotitmishn.
Kraln Kripaln Mahakalkaln. Multiply Gar
Snsarparn Ntoahn .. 2 ..
Tusharadri Snkash Gbirn Gurn.
Mr. Srirn Mnobhutkoti blaze.
Sfurnmuli Kallolini Ganga elegant. Lsdbal
Balendu Kante Bhujanga .. 3 ..
Cltkundln Bhur Vishaln Sunetrn. Prasnnannan Nilkantn
Dyalmn.
Mundmaln मृगाद्दीशचर्माम्बरं. Priyn Shankrn
Srwnathn Bjami .. 4 ..
Prcndn Prkrishtn Preshm Prglbn. Akndn Ajn
Bnukotiprkashn.
Triad: Nimurlnan Sulpanin colic. Bjeahn
Bwaniptin Bavgmyn .. 5 ..
Kalpantkari Klatit welfare.
Schchidanand always Purari donor.
Chidananda Mohaphari Sndoh. Prasid Prasid
Prbho Mnmthari .. 6 ..
Not Yavd Padarvindn Umanath. Locke Bjntih
Nranan or beyond.
Not Tawatsukhan Sntapanashan consoles. Prasid
Prbho Srwbhutaddiwasn .. 7 ..
Not Janami Pujan Yogn Jpan nave. Ntoahn
Tubhyam Smbhu forever.
Jrajnm sorry Kugtatpyamanan.
Aqua Prbho Apnnmamish Shambho .. 8 ..
Staff - Rudrashtkmidn Proktn Hrtoshye Vipren.
These Ptnti Nnero bhaktya Teshan Smbhu: Prasidte .. 9
  Shiva Swami Anand Mehta = 099 260 -77 010  
 जमाना बदल गया -- नही बदले तो सिर्फ गुरु == आज भी वही ढर्रा \\
       किस जमाने की बात करते हो जब लोगो के पास् पैसा नही होता था \
समय होता था \\
               राजा आश्रम  का खर्च उठाते थे  \
                अन्य वहां पर सेवा करते और शिक्षा पाते थे \ आज जमाना बदल गया हे सेवा का रूप धनात्मक हो गया हे \
\                पेस दो शिक्षा लो , बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय क्या हे \\
गया जमाना एक दो चार मंत्र सीखे और बस भगवान से भी बड़े या कहि से पुरानी किताब खरीदी और अपने नाम से छपवाई और महागुरु का तमगा लगा लिया जो थोड़ा बहुत भी जनता हे बताना नही चाहता किताब के लिए कह दिया की गुरु बिना सिद्धि नही होगी \\
               अब वह  ही जो कहे ,पावन - पावन नाम वाले अंदर == एक भाषण में तो उस पाखंडी ने यहां तक कह दिया की ==   अगर यम के दूत भी लेने आय तो नही लेजा सकते = कह देना की .... का सतसंग चल रहा हे , तेरे बाप का कितना अहंकार हो चला था \\
                      जो सिखाय  वह गुरु \\ अनेको को देखने में आया हे की सिद्धिया यु ही बगैर गुरु के हो गयी हे , बस वह मंदिर जाते थे , हो गए सिद्ध जिनका शनि अस्त हो जन्मांग में वह भी अपनी आजीविका के लिए इस क्षेत्र में आजाता हे ,, व्यापर उसका उस दशा में चलता नही ,
                दसम मंगल हो तांत्रिक बना देता हे बगैर गुरु के ही नवम  राहु या गुरु सिद्धि दे ही देता हे बगैर गुरु और भी अनेको योग हे \ साधना और सिद्धि के अनेको महिलाये भी इस और अग्रसर हे
                     , जिनका पारिवारिक जीवन कष्टमय हे \ या परित्यक्ता हे
\ बाकि जो भी यह तक पढ़ते हुवे आया हे वह यह जानले की यह कार्य उत्तम नही हे जितना हो सके इन बातो से दूर ही रहो व्यापार करो नौकरी करो इस प्रकार की तो बात भी न करो न ही इस प्रकार की किसी पुस्तक का अध्ययन भी न करो वह पुस्तक तुम्हे गुमराह कर किंकर्तव्यविमूढ़ बना देगी
\\                            स्वप्न देखने लग जावोगे और एक बात \\ जब भी आपको गुरु की महादशा लगेगी गुरु                                        बगैर प्रयास के ही मिल जायगा और आप यदि गुरु उत्तम अवस्था में हे तो गुरुओ को बहुत सेवाभाव और दान दक्षिणा से प्रसन्न

                     भी रखोगे \\ अनेको लोग गुरु की दशा के समय गुरु बना ही लेते हे \\
                      दशा बदलते ही शनि खराब हे तो फिर उसके दुश्मन भी हो जाते हे \\ गुरुवो की सेवा करने वाला खुद गुरु बन कर धगने लग जाता हे \\ हर गुरु को ज्योतिष का ज्ञान भी नही होता हे वह तो बस महानता में ही , महान होता हे , दुर्भाग्य उन्हें नष्ट कर ही देता हे \\

                         आप कल्याण को प्राप्त हो और इस विषय से दूर रहे \\
                              बातें कहानी तो बहुत हे \\ अप्सरा की साधना नपुंसक ही ज्यादा करते हे और बहुत ही निर्धन व्यक्ति को सपने में लक्ष्मी ही दिखती हे की यहां खोद लो धन निकलेगा , यह देखने में आया हे \\                             माफ़ करना दोस्त कुछ किताब में साधना पध्ध्यि को महान जानकर और अपने को ही बहुत शक्तिवान जानकर अहम वष किसी से भीड़ मत जाना अनेको साधक नंग धडंग जगह जगह घूमते कील जायेंगे जो कभी दम्भ भरते थे हिमालय को भी उखाड  फेकने का \\

1. मूलाधार चक्र</b> 
: यह शरीर का पहला चक्र है। गुदा और लिंग के बीच चार पंखुरियों वाला यह 'आधार चक्र' है। 99.9% लोगों की चेतना इसी च क्र पर अटकी रहती है और वे इसी चक्र में रहकर मर जाते हैं। जिनके जीवन में भोग, संभोग और निद्रा की प्रधानता है उनकी ऊर्जा इसी चक्र के आसपास एकत्रित रहती है। मंत्र : लं चक्र जगाने की विधि : मनुष्य तब तक पशुवत है, जब तक कि वह इस चक्र में जी रहा है इसीलिए भोग, निद्रा और संभोग पर संयम रखते हुए इस चक्र पर लगातार ध्यािन लगाने से यह चक्र जाग्रत होने लगता है। इसको जाग्रत करने का दूसरा नियम है यम और नियम का पालन करते हुए साक्षी भाव में रहना। प्रभाव : इस चक्र के जाग्रत होने पर व्यक्ति के भीतर वीरता, निर्भीकता और आनंद का भाव जाग्रत हो जाता है। सिद्धियां प्राप्त करने के लिए वीरता, निर्भीकता और जागरूकता का होना जरूरी है।
 2. स्वाधिष्ठान चक्र- 
यह वह चक्र है, जो लिंग मूल से चार अंगुल ऊपर स्थित है जिसकी छ: पंखुरियां हैं। अगर आपकी ऊर्जा इस चक्र पर ही एकत्रित है तो आपके जीवन में आमोद-प्रमोद, मनोरंजन, घूमना-फिरना और मौज-मस्ती करने की प्रधानता रहेगी। यह सब करते हुए ही आपका जीवन कब व्यतीत हो जाएगा आपको पता भी नहीं चलेगा और हाथ फिर भी खाली रह जाएंगे। मंत्र : वं कैसे जाग्रत करें : जीवन में मनोरंजन जरूरी है, लेकिन मनोरंजन की आदत नहीं। मनोरंजन भी व्यक्ति की चेतना को बेहोशी में धकेलता है। फिल्म सच्ची नहीं होती लेकिन उससे जुड़कर आप जो अनुभव करते हैं वह आपके बेहोश जीवन जीने का प्रमाण है। नाटक और मनोरंजन सच नहीं होते। प्रभाव : इसके जाग्रत होने पर क्रूरता, गर्व, आलस्य, प्रमाद, अवज्ञा, अविश्वास आदि दुर्गणों का नाश होता है। सिद्धियां प्राप्त करने के लिए जरूरी है कि उक्त सारे दुर्गुण समाप्त हो तभी सिद्धियां आपका द्वार खटखटाएंगी।
 3. मणिपुर चक्र : 
नाभि के मूल में स्थित रक्त वर्ण का यह चक्र शरीर के अंतर्गत मणिपुर नामक तीसरा चक्र है, जो दस कमल पंखुरियों से युक्त है। जिस व्यक्ति की चेतना या ऊर्जा यहां एकत्रित है उसे काम करने की धुन-सी रहती है। ऐसे लोगों को कर्मयोगी कहते हैं। ये लोग दुनिया का हर कार्य करने के लिए तैयार रहते हैं। मंत्र : रं कैसे जाग्रत करें : आपके कार्य को सकारात्मक आयाम देने के लिए इस चक्र पर ध्यान लगाएंगे। पेट से श्वास लें। प्रभाव : इसके सक्रिय होने से तृष्णा, ईर्ष्या, चुगली, लज्जा, भय, घृणा, मोह आदि कषाय-कल्मष दूर हो जाते हैं। यह चक्र मूल रूप से आत्मशक्ति प्रदान करता है। सिद्धियां प्राप्त करने के लिए आत्मवान होना जरूरी है। आत्मवान होने के लिए यह अनुभव करना जरूरी है कि आप शरीर नहीं, आत्मा हैं। आत्मशक्ति, आत्मबल और आत्मसम्मान के साथ जीवन का कोई भी लक्ष्य दुर्लभ नहीं।
 4. अनाहत चक्र-
 सहस्रार की स्थिति मस्तिष्क के मध्य भाग में है अर्थात जहां चोटी रखते हैं। यदि व्यक्ति यम, नियम का पालन करते हुए यहां तक पहुंच गया है तो वह आनंदमय शरीर में स्थित हो गया है। ऐसे व्यक्ति को संसार, संन्यास और सिद्धियों से कोई मतलब नहीं रहता है। कैसे जाग्रत करें : मूलाधार से होते हुए ही सहस्रार तक पहुंचा जा सकता है। लगातार ध्यान करते रहने से यह चक्र जाग्रत हो जाता है और व्यक्ति परमहंस के पद को प्राप्त कर लेता है। प्रभाव : शरीर संरचना में इस स्थान पर अनेक महत्वपूर्ण विद्युतीय और जैवीय विद्युत का संग्रह है। यही मोक्ष का द्वार है। हृदय स्थल में स्थित स्वर्णिम वर्ण का द्वादश दल कमल की पंखुड़ियों से युक्त द्वादश स्वर्णाक्षरों से सुशोभित चक्र ही अनाहत चक्र है। अगर आपकी ऊर्जा अनाहत में सक्रिय है, तो आप एक सृजनशील व्यक्ति होंगे। हर क्षण आप कुछ न कुछ नया रचने की सोचते हैं। आप चित्रकार, कवि, कहानीकार, इंजीनियर आदि हो सकते हैं। मंत्र : यं कैसे जाग्रत करें : हृदय पर संयम करने और ध्यान लगाने से यह चक्र जाग्रत होने लगता है। खासकर रात्रि को सोने से पूर्व इस चक्र पर ध्यान लगाने से यह अभ्यास से जाग्रत होने लगता है और सुषुम्ना इस चक्र को भेदकर ऊपर गमन करने लगती है। प्रभाव : इसके सक्रिय होने पर लिप्सा, कपट, हिंसा, कुतर्क, चिंता, मोह, दंभ, अविवेक और अहंकार समाप्त हो जाते हैं। इस चक्र के जाग्रत होने से व्यक्ति के भीतर प्रेम और संवेदना का जागरण होता है। इसके जाग्रत होने पर व्यक्ति के समय ज्ञान स्वत: ही प्रकट होने लगता है।व्यक्ति अत्यंत आत्मविश्वस्त, सुरक्षित, चारित्रिक रूप से जिम्मेदार एवं भावनात्मक रूप से संतुलित व्यक्तित्व बन जाता हैं। ऐसा व्यक्ति अत्यंत हितैषी एवं बिना किसी स्वार्थ के मानवता प्रेमी एवं सर्वप्रिय बन जाता है।
 5. विशुद्ध चक्र- 
कंठ में सरस्वती का स्थान है, जहां विशुद्ध चक्र है और जो सोलह पंखुरियों वाला है। सामान्यतौर पर यदि आपकी ऊर्जा इस चक्र के आसपास एकत्रित है तो आप अति शक्तिशाली होंगे। मंत्र : हं कैसे जाग्रत करें : कंठ में संयम करने और ध्यान लगाने से यह चक्र जाग्रत होने लगता है। प्रभाव : इसके जाग्रत होने कर सोलह कलाओं और सोलह विभूतियों का ज्ञान हो जाता है। इसके जाग्रत होने से जहां भूख और प्यास को रोका जा सकता है वहीं मौसम के प्रभाव को भी रोका जा सकता है।
 6. आज्ञाचक्र :
 भ्रूमध्य (दोनों आंखों के बीच भृकुटी में) में आज्ञा चक्र है। सामान्यतौर पर जिस व्यक्ति की ऊर्जा यहां ज्यादा सक्रिय है तो ऐसा व्यक्ति बौद्धिक रूप से संपन्न, संवेदनशील और तेज दिमाग का बन जाता है लेकिन वह सब कुछ जानने के बावजूद मौन रहता है। इस बौद्धिक सिद्धि कहते हैं। मंत्र : ऊं कैसे जाग्रत करें : भृकुटी के मध्य ध्यान लगाते हुए साक्षी भाव में रहने से यह चक्र जाग्रत होने लगता है। प्रभाव : यहां अपार शक्तियां और सिद्धियां निवास करती हैं। इस आज्ञा चक्र का जागरण होने से ये सभी शक्तियां जाग पड़ती हैं और व्यक्ति एक सिद्धपुरुष बन जाता है।
 7. सहस्रार चक्र :

shiv pujan ,nshamukti , shukh - shanti


आप , आपके बच्चे या परिवार का कोई अन्य , आपके पति =भाई = कोई भी बहुत अधिक काम-वासना में लिप्त हो जाये , परिवार की और ध्यान न दे , या पेसो को ही सब कुछ मन बैठे , तब आप उनसे यह पथ नित्य पढ़ने का कहे \ कुछ ही दिनों में मानसिकता में बदलाव होगा == मेरा आजमाया प्रयोग हे \\ 

shiv pujan ,nshamukti , shukh - shanti 



नमामीशमीशान निर्वाणरूपं। विभुं व्यापकं
ब्रह्म वेदस्वरूपं।
निजं निगुर्णं निर्विकल्पं निरीहं
i 
चिदाकाशमाकाशवासं भजेहं ।। 1।।
निराकारमोंकालमूलं तुरीयं। गिराग्यान
गोतीतमीशं गिरीशं।
करालं महाकालकालं कृपालं। गुणा गार
संसारपारं नतोअहं।। 2।।
तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं।
मनोभूतकोटि प्रभा श्री शरीरं।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गंगा। लसदभाल
बालेन्दु कंठे भुजंगा ।। 3।।
चलत्कुंडलं भू्र सुनेत्रं विशालं। प्रसन्नाननं नीलकंठं
दयालमं।
मृगाद्दीशचर्माम्बरं मुण्डमालं। प्रियं शंकरं
सर्वनाथं भजामि ।। 4।।
प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशम्। अखण्डं अजं
भनुकोटिप्रकाशं।
त्रय: शूल निमूर्लनं शूलपाणिं। भजेअहं
भवानीपतिं भावगम्यं ।। 5।।
कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी।
सदा सच्चिदानन्द दाता पुरारी।
चिदानंद संदोह मोहापहारी। प्रसीद प्रसीद
प्रभो मन्मथारी।। 6।।
न यावद उमानाथ पादारविन्दं। भजंतीह लोके
परे वा नराणां।
न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं। प्रसीद
प्रभो सर्वभूताद्दिवासं।। 7।।
न जानामि योगं जपं नैव पूजां। नतोअहं
सदा सर्वदा शम्भु तुभ्यं।
जराजन्म दु:खौघतातप्यमानं।
प्रभो पाहि आपन्नमामीश शम्भो ।। 8।।
श्लोक – रूद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये।
ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भु: प्रसीदते ।। 9
स्वामी आनंद शिव मेहता = 099260 -77010
---- साधनाओ का समय हे नवरात्री = अनेको पुस्तकीय लोग बहुत साधनाए बताएँगे ही \\
======= बगुलामुखी साधना == यह सबकी प्रिय साधना हे == इस साधना से अनेको लोगो ने अपना बहुत ही ज्यादा नुकसान किया हे \\ यह हमारे देखने में आया हे \\ हो सकता हो की आप यह भी कहे की आप साधना से हमें दूर कर रहे हे \\ यह नही \\ आपका नुकसान न हो बस यही कामना हे \\
==== दे


===== बगुलामुखी साधना== == यह सबकी प्रिय साधना हे == इस साधना से अनेको लोगो ने अपना बहुत ही ज्यादा नुकसान किया हे \\ यह हमारे देखने में आया हे \\ हो सकता हो की आप यह भी कहे की आप साधना से हमें दूर कर रहे हे \\ यह नही \\ आपका नुकसान न हो बस यही कामना हे \\
==== देवी का मन्त्र ही इस प्रकार का हे की , साधक [खुद] स्वयं ही अपने ही हाथो अपना नुकसान कर बैठता हे , जब उसको ज्ञात होता हे की यह क्या हुवा हे तब तक बहुत देरी हो चुकी होती हे \\
==== जो भी साधक इसको संपन्न करता हे उसका कार्य और व्यापर प्रभावित होता हे और उसके आसपास की मित्र मण्डली भी अक्सर कम हो जाया करती हे \\ वह अपने को सुरक्षित करने हेतु यह करता हे , और स्वयं ही उससे आहत हो जाता हे \\
==== मन्त्र का अर्थ ही यही हे की हे देवी ==सभी दुस्टों का बोलना= मुख = रोक दे , चलना रोक दे , जीववहा को कील दो = हे देवी आप यह करों \\
==== अब आप स्वयं ही सोचिये की आप किसी का नुकसान या अपने फायदे के लिए यह जपते हे तो पहले तो स्वयं का नुकसान फिर दूसरे का अतः भावना वस आप अपना ही नुकसान न कर ले = मन्त्र का यह आधा ही अर्थ हे पर मूल यही हे \\ अनेको लोग इसके और भी अनेको प्रयोग बताते हे \\ मगर वह सभी फायदे के लिए नही होते हे इससे करता स्वयं ही नुकसान उठता हे यह हमने ज्यादा देखा हे \\ आप से निवेदन हे की इस प्रकार की विधियों से दूर रहे \\ किताब में अनेको साधनाए बताई गयी हे किन्तु उसको करके जाना और अनुभव बहुत काम लोगो को हे \\ केवल बड़प्पन दिखने हेतु साधनाए प्रकाशित करने से जिज्ञासा वष दुसरो को नुकसान होता हे \\ फिर भी आप चाहे तो करे \\ सावधानी से योग्य गुरु के सानिद्ध्य में \\ इसके प्रयोग से अनेको साधको को बर्बाद होते देखा हे \\

वी का मन्त्र ही इस प्रकार का हे की , साधक [खुद] स्वयं ही अपने ही हाथो अपना नुकसान कर बैठता हे , जब उसको ज्ञात होता हे की यह क्या हुवा हे तब तक बहुत देरी हो चुकी होती हे \\
==== जो भी साधक इसको संपन्न करता हे उसका कार्य और व्यापर प्रभावित होता हे और उसके आसपास की मित्र मण्डली भी अक्सर कम हो जाया करती हे \\ वह अपने को सुरक्षित करने हेतु यह करता हे , और स्वयं ही उससे आहत हो जाता हे \\
==== मन्त्र का अर्थ ही यही हे की हे देवी ==सभी दुस्टों का बोलना= मुख = रोक दे , चलना रोक दे , जीववहा को कील दो = हे देवी आप यह करों \\

आप चाहे तो करे \\ सावधानी से योग्य गुरु के सानिद्ध्य में \\ इसके प्रयोग से अनेको साधको को बर्बा==== अब आप स्वयं ही सोचिये की आप किसी का नुकसान या अपने फायदे के लिए यह जपते हे तो पहले तो स्वयं का नुकसान फिर दूसरे का अतः भावना वस आप अपना ही नुकसान न कर ले = मन्त्र का यह आधा ही अर्थ हे पर मूल यही हे \\ अनेको लोग इसके और भी अनेको प्रयोग बताते हे \\ मगर वह सभी फायदे के लिए नही होते हे इससे करता स्वयं ही नुकसान उठता हे यह हमने ज्यादा देखा हे \\ आप से निवेदन हे की इस प्रकार की विधियों से दूर रहे \\ किताब में अनेको साधनाए बताई गयी हे किन्तु उसको करके जाना और अनुभव बहुत काम लोगो को हे \\ केवल बड़प्पन दिखने हेतु साधनाए प्रकाशित करने से जिज्ञासा वष दुसरो को नुकसान होता हे \\ फिर भी द होते देखा हे \\


 

गुरुवार, 7 अगस्त 2014

== वापस  गुरू उदित हो रहा हैं , पुनः वर्षा में कमी दैनिक उपयोग की वस्तुओ के भाव में तेजी , सोने में तेजी चांदी में २००० तक की तेजी ३ माह में , एक माह में क्रूड और २०० रूपये तक सस्ता , वस्त्र निर्माण कर्ताओ को घटा , रुई के भाव मंदें , सोयाबीन  १०० सस्ता इस माह \\

बुधवार, 11 जून 2014

!!!!!लालच ज्ञानी को भी मुर्ख बना देता हे... !!!!!

!!!!!लालच ज्ञानी को भी मुर्ख बना देता हे...  !!!!!

और ज्ञानी यह जान ही नही पता हे की उससे कहां मूर्खता हो चुकी हे \ 
जिस प्रकार घमंड ज्ञान को खा जाता हे ठीक उसी प्रकार से \\ 

महान समझने वाला व्यक्ति भी लालच के वशीभूत व्यक्ति गलती पर गलती होने पर भी हारे  हुवे जुवारी की तरह ही और गलती करता ही जाता हे \\

 इस कारण ज्ञानीजन सदेव दुसरो से सलाह करते हे \\
 जब भी बार बार गलती हो आप अवश्य ही अपने किसी मित्र या हितेषी जो भी आपका करीबी हो उससे सलाह अवश्य ही ले \\

 इससे आप सदेव ही वृद्धि को प्राप्त होकर सफलता को प्राप्त करेंगे \\ 
अभी कर्क राशि वालो को बहुत ही सावधान रहने की आवश्यकता हे \ 

यदि जन्म का शनि खराब हे तो वह आपको स्थाई वैभव क्षीण योग प्रदान करता हे ,जिससे पुराना चला आरहा मान सम्मान यश वैभव कीर्ति सब बर्बाद हो जाती हे \\
 व्यक्ति को पुनः स्ट्रगल को बाध्य कर देती हे \\ 

अतः आप संयम पूर्वक आपने यह03 (तीन वर्ष ) का समय बिताये \\
 आगे रामजी की इच्छा होनी को कौन टाल सकता हे \\ 
समझदार वह हे जो ठोकर लगने से पहले ही सम्हल जाय \\


== स्वामी आनंद "शिव" मेहता..mob.--  09926077010 ==इंदौर  

ज्योतिष से सलाह

 ज्योतिष से सलाह

आप किसी भी ज्योतिष से सलाह लो ही नही , सलाह लेते हो तो वह जो भी उपाय बताये वह करो ,, 

यदि उनका बताया उपाय आपकी आर्थिक स्तिथि से ज्यादा हो तो आप उनसे स्पष्ट कहे की हम इतना खर्च नही कर सकते ,, 

उनकी जो भी फीश या दक्षिणा जो भी हो या जो वह मांगे अवश्य ही प्रदान करे 

और यदि आपकी स्तिथि अत्यंत ही दयनीय हो तो पहले ही उनसे स्पष्ट कह दे की आप कुछ भी खर्च करने की स्तिथि में नही हे ,, ताकि उनका मन आपकी और से मलिन न हो ,, और आपको वह आशीष ही दे \\ 
अनेको गुरुओ को देखा हे जिन्होंने अपने पास से भी अपने भक्त का भला किया हे \\ 
सुखमय जीवन हमारा अधिकार हे .....

किसी भी और कभी भी गुरु और ब्रह्ममण से मिलने  जाओ तो कुछ देना अवस्य ही चाहिए..
यह नही लिखा हे की आपके पास देने को कुछ हे ही नही तो कही पूछने नही जाना हे...
 और रहा सवाल ज्योतिष को केसा होना चाहिए तो वह सभी का अपना व्यक्तिगत मामला हे किसी को हम कहने वाले कौन की पैसा ले या न ले और आपसे यह कोई सलाह नही मांगी हे की हम क्या करे...
 धन्यवाद 

शनिवार, 7 जून 2014

उच्च का गुरु == लाभ कम और हानि ज्यादा देगा \\ सोना , चाँदी ,एक माह बाद महगA गुरु का कर्क प्रवेश --

       
   उच्च का गुरु == लाभ कम और हानि ज्यादा देगा \\ सोना , चाँदी ,एक माह बाद महगा 
 शाशन को सावधानी आवश्यक हे === लूटपाट और संघर्ष =,मौसमी  बीमारी का प्रकोप
    गुरु का कर्क प्रवेश -- पड़ोसी देशो से प्रेम -भाव ,नेताओ का आपसी प्रेम ,जनता में सुख और आनंद की प्राप्ति ,भूमि पर सुखमय वातावरण ,सुखमय  वर्षा ,ऑगस्ट ,सितमबर में टिड्डीदल का प्रकोप ,\\ दुर्भिक्ष अशंति और रोगो का फेलना ,,सोना , चाँदी,ताम्बा अनाज महंगा ,
       गुरु आषाढ़ मास प्रवेश फल --रज्य की जनता को क्लेश,मुख्यमंत्रियों को शारीरिक कष्ट वर्षा की कमी ,फसल का नुकसान,नव क्रांति का उदय , पूर्वोत्तर व् दक्षिण के प्रदेशो में अच्छी वर्षा ,मालवा में फसल की कमी .मक्का की फसल उत्तम ,,\, नेताओ का अकस्मात दुर्घटनाग्रस्त होना \\
   वृश्चिक राशि -शनि -प्रवेश ==== राज कोप ,वर्षा की कमी ,पशु -पक्षियों के भोजन की कमी ,मनुष्यो में कलह ,शत्रुओ को क्लेश ,[चीन - पाकिस्तान ] कार्यो का विनाश ,अनेको प्रकार की बीमारी ,हैजा और क्षय रोग ,अस्थमा वायु प्रदूषण से बीमारी कुछ इलाको में चेचक होना भी सम्भव हे ---अभी पिछले कुछ वर्षो में -शनि के कन्या तुला के भर्मण  में कोई बीमाई नही फैली थी \\
        गुरु का कर्क प्रवेश --
 शाशन को सावधानी आवश्यक हे === लूटपाट और संघर्ष =,मौसमी  बीमारी का प्रकोप
    गुरु का कर्क प्रवेश -- पड़ोसी देशो से प्रेम -भाव ,नेताओ का आपसी प्रेम 

गुरुवार, 5 जून 2014

कोई मरेगा नही कानून बनेगा नहीं \\

    
कोई मरेगा नही कानून बनेगा नहीं \\

 मित्रो , कल टीवी पर दिनभर बाल की खाल निकलती रही ,, हमारे देश में एक्सीडेंट का आकड़ा प्रतिदिन का बहुत ज्यादा हे \\ सभी को १२० - से १५० तक ही चलना हे \\ टीवी पर ज्योतिष और टैरो कार्ड वाली महोदय भी अपने मनगढ़ंत विचार परोस गयी , \\ हमारे देश का तो नियम हे जब तक कोई मरता नही कोई कानून बनता नही \\ कानून तो बहुत बड़ी बात हे ,,गली में ब्रेकर भी नही बनते हे \\ अनेको कल के गाल में समा  गए हे \\ जितने नेता असमय त्रासदी का शिकार हुवे आज उनके बेटे उच्च पद पर आसीन हे \\ सभी ने यथा  सम्भव प्रयोजन किया ही होगा  शांति की परिवार में और अन्य अपघात न हो \\ संजय गांधी ,, श्रीमती गांधी ,, राजीव जी ....क्या इनके परिवार ने कुछ नही किया होगा  अवश्य ही किया होगा \\ 

       जो चले गए हे उन्हें छोड़ो जो मौजूद हे वह कैसे पूर्णायु हो यह ही विचारणीय हे \\ शाशन की एक नीति से सेकड़ो को जीवन मिलता हे और सेकड़ो का जीवन बर्बाद भी होता हे \\ इसके जिम्मेदार नीति निर्माता ही तो हे  

पद पर आसीन व्यक्ति की कुशलता का दायित्व हमारा भी हे \\ वह सुरक्षित रहे \\  

बुधवार, 4 जून 2014

mrtyu ko jane \\\\\\ आप भी अमृतमय हे \\\\

 \\\\\\ आप भी अमृतमय हे \\\\


रावण की नाभि में अमृत था ;यह तो महर्षि वाल्मीकि और तुलसीदासजी ने लिखा हे \\\
मगर अन्य के लिए नहीं लिखा क्यों क्या कारण था महापुरुषों कृपया इस पर प्रकाश डाले \\

मुझे तो प्राणिमात्र में अमृत नजर आता हे ;
आपने कभी अपने विद्वान ज्योतिष से यह जाना हे या नही \ 
अपने ज्ञानी विद्वान ज्योतिषजी से तुरंत जाने की आप अमृतमय हे या नही \\\ 


शिव मेहता इंदोर 
आपके अंदर का भी अमृत जब तक नष्ट नही होगा तब तक तुम्हे भी इस 
संसार में मार नही सकता या मृत्यु नही आसकती तो फिर देरी क्यों अभी 
इसी वक्त बगैर समय गवाए अपने निकटतम ज्योतिष से जानिए \\\
शिव मेहता इंदोर आगे मै तो लिखुगा ही जी \\\


सभी मित्रो पढ़ने वालो चाहनेवालों को शुभ रात्रि जी यह कथन आपको पसंद 
आये तो अवश्य ही शेयर करे जी आपका भी सहयोग किसी की जान को बचाने मै 
होगा जी आपका ज्यादा समय लिया क्षमा चाहता हूँ जी \\\