बुधवार, 4 जून 2014

mrtyu ko jane \\\\\\ आप भी अमृतमय हे \\\\

 \\\\\\ आप भी अमृतमय हे \\\\


रावण की नाभि में अमृत था ;यह तो महर्षि वाल्मीकि और तुलसीदासजी ने लिखा हे \\\
मगर अन्य के लिए नहीं लिखा क्यों क्या कारण था महापुरुषों कृपया इस पर प्रकाश डाले \\

मुझे तो प्राणिमात्र में अमृत नजर आता हे ;
आपने कभी अपने विद्वान ज्योतिष से यह जाना हे या नही \ 
अपने ज्ञानी विद्वान ज्योतिषजी से तुरंत जाने की आप अमृतमय हे या नही \\\ 


शिव मेहता इंदोर 
आपके अंदर का भी अमृत जब तक नष्ट नही होगा तब तक तुम्हे भी इस 
संसार में मार नही सकता या मृत्यु नही आसकती तो फिर देरी क्यों अभी 
इसी वक्त बगैर समय गवाए अपने निकटतम ज्योतिष से जानिए \\\
शिव मेहता इंदोर आगे मै तो लिखुगा ही जी \\\


सभी मित्रो पढ़ने वालो चाहनेवालों को शुभ रात्रि जी यह कथन आपको पसंद 
आये तो अवश्य ही शेयर करे जी आपका भी सहयोग किसी की जान को बचाने मै 
होगा जी आपका ज्यादा समय लिया क्षमा चाहता हूँ जी \\\

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