रविवार, 19 जुलाई 2015

नवरात्री की साधना सिद्धि navratri ki sadhna ,kali , duga taaa

नवरात्री की साधना सिद्धि navratri ki sadhna 

गुप्त नवरात्री 

17 से 25 जुलाई 2015 तक 
और यह नियम और साधना प्रत्येक नवरात्री हेतु उपयोगी हे आप प्रत्येक नवरात्री में संपन्न कर सकते हे ।
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इस वर्ष गुप्त नवरात्री 17 जुलाई शुक्रवार से शुरू होकर 25 जुलाई शनिवार तक है 
● इस वर्ष गुप्त नवरात्री आषाढ़ मास की प्रतिपदा यानि 17 जुलाई से शुरू होकर 25 जुलाई नवमी तक मान्य होगा ।
● हिन्दू धर्म में नवरात्र मां दुर्गा की साधना के लिए बेहद महत्वपूर्ण माने जाते हैं। नवरात्र के दौरान साधक विभिन्न तंत्र विद्याएं सीखने के लिए मां भगवती की विशेष पूजा करते हैं। तंत्र साधना आदि के लिए गुप्त नवरात्र बेहद विशेष माने जाते हैं। आषाढ़ और माघ मास के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली नवरात्र को गुप्त नवरात्र कहा जाता है। इस नवरात्रि के बारे में बहुत ही कम लोगों को जानकारी होती है।
गुप्त नवरात्र पूजा विधि
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गुप्त नवरात्र के दौरान अन्य नवरात्रों की तरह ही पूजा करनी चाहिए। नौ दिनों के उपवास का संकल्प लेते हुए प्रतिप्रदा यानि पहले दिन घटस्थापना करनी चाहिए। घटस्थापना के बाद प्रतिदिन सुबह और शाम के समय मां दुर्गा की पूजा करनी चाहिए। अष्टमी या नवमी के दिन कन्या पूजन के साथ नवरात्र व्रत का उद्यापन करना चाहिए।
गुप्त नवरात्रि का महत्त्व
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● देवी भागवत के अनुसार जिस तरह वर्ष में चार बार नवरात्र आते हैं और जिस प्रकार नवरात्रि में देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है, ठीक उसी प्रकार गुप्त नवरात्र में दस महाविद्याओं की साधना की जाती है।
● गुप्त नवरात्रि विशेषकर तांत्रिक क्रियाएं, शक्ति साधना, महाकाल आदि से जुड़े लोगों के लिए विशेष महत्व रखती है। इस दौरान देवी भगवती के साधक बेहद कड़े नियम के साथ व्रत और साधना करते हैं। इस दौरान लोग लंबी साधना कर दुर्लभ शक्तियों की प्राप्ति करने का प्रयास करते हैं।
● इस नवरात्री की समाप्ति के साथ ही चातुर्मास प्रारंभ हो जाते हैं ,देवशयनी एकादसी से देवउठनी (देवप्रबोधनी )एकादसी के बीच चार माह को ऋषि परंपरा में विशेष महत्त्व प्राप्त है ! 
‘नव शक्ति समायुक्तां नवरात्रं तदुच्यते’। 
नौ शक्तियों से युक्त नवरात्रि कहलाते हैं। देवी पुराण के अनुसार एक वर्ष में चार माह नवरात्र के लिए निश्चित हैं-
उक्तं – 
‘आश्विने वा ऽथवा माघे चैत्रें वा श्रावणेऽति वा।’
अर्थात आश्विन मास में शारदीय नवरात्रि तथा चैत्र में वासंतिक नवरात्रि होते हैं। माघ व श्रावण के गुप्त नवरात्रि कहलाते हैं वहीं शारदीय नवरात्रि में देवी शक्ति की पूजा व बासंतिक नवरात्रि में विष्णु पूजा की प्रधानता रहती है…। 
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● प्रतिदिन नौ दिनों तक यम, नियम, संयम व श्रद्धा से मार्कण्डेय पुराण अंतर्गत दुर्गा सप्तशती का पाठ भक्तगण करते हैं।
‘नमो दैव्ये महादैव्ये, शिवायै सततं नमः।
नमः प्रकृत्यै भद्रायै, नियता प्रणताः स्मताम्‌’॥
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गुप्त नवरात्रि की प्रमुख देवियां
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● गुप्त नवरात्र के दौरान कई साधक महाविद्या (तंत्र साधना) के लिए मां काली, तारा देवी, त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी, माता छिन्नमस्ता, त्रिपुर भैरवी, मां ध्रूमावती, माता बगलामुखी, मातंगी और कमला देवी की पूजा करते हैं।
● गुप्त नवरात्रि में सुबह या विशेष रूप से रात्रि में दिन के मुताबिक देवी के अलग-अलग स्वरूपों का ध्यान कर सामान्य पूजा सामग्री अर्पित करें।
● पूजा में लाल गंध, लाल फूल, लाल वस्त्र, आभूषण, लाल चुनरी चढ़ाकर फल या चना-गुड़ का भोग लगाएं। धूप व दीप जलाकर माता के नीचे लिखे मंत्र का नौ ही दिन कम से कम एक माला यानी 108 बार जप करना बहुत ही मंगलकारी होता है –
सर्व मंगलमांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके ।
शरण्ये त्र्यंबके गौरि नारायणि नमोस्तुते

सिद्ध कुंजिका स्तोत्र प्रयोग॥
सिद्ध कुंजिका स्तोत्र प्रयोग॥ (सदगुरुदेव जी ने आज तक जितने भी प्रयोग कराये है उन सब मे इस का पाठ जरूर किया है )
यह साधना किसी भी नवरात्रि से या किसी भी माह कि अष्टमी से शुरु किया जा सकता है । प्रातः उठकर स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण कर आसन बिछा कर पूर्व की मुंह कर बैठ जाय और सामने गुरु चित्र एवं भगवती दुर्गा चित्र स्थापित कर दे, फिर पात्र मे दुर्गा यंत्र रख कर उसे जल से स्नान करा कर, पोछ कर अलग पात्र मे स्तापित कर दे उस पर कुंकुम अक्षत पुष्प चढावे घी का दीपक व अगरबत्ती लगा देँ और फिर सिद्ध "कुंजिकास्त्रोत्र" का नित्य 108 पाठ 21 दिन तक करेँ । फिर 21 वाँ दिन पाठ कर किसी 1, 3, 5 या 9 कुमारी कन्याओ को भोजन करवे और यथोचित वस्त्र दक्षिणा आदि दे ।
ऐसा करने से साधना सम्पन्न होतो-होते साधक की मनोकामना पूर्ण होती है ।
इसमे महामृत्युंज्य , गणेश , महाकाली ,ज्वाला देवी ,रुद्र शक्ति , प्रकृति दस महाविद्याएं , जृम्भनी इत्यादि । भैरवी , खेचरी से लेकर पार्वती का भी इस स्तोत्र के द्वारा जागरण सम्पन्न हो जाता है । स्तम्भन , मारण , मोहन , शत्रुनाश , सिद्धि , प्राप्ति , विजय प्राप्ति , ज्ञान प्राप्ति अर्थात सभी क्षेत्रो मे प्रवेश की यह महाकुंजी है ।
प्रतिदिन प्रातःकाल सिद्ध कुञ्जिका स्तोत्रम् का पाठ कराने से सभी प्रकार के विघ्न – बाधा नष्ट हो जाते हैं व परम सिद्धि प्राप्त होती है| इसके पाठ से काम – क्रोध का मारण, इष्टदेव का मोहन, मन का वशीकरण, इन्द्रियों की विषय – वासनाओं का स्तम्भन और मोक्ष प्राप्ति हेतु उच्चाटन आदि कार्य सफल होते हैं|
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे || ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा ||
नमस्ते रूद्ररुपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि |
नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनि || १ ||
नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिनि || २ ||
जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरुष्व मे |
ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका || ३ ||
क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते |
चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी || ४ ||
विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मंत्ररूपिणि || ५ ||
धां धीं धूं धूर्जटेः पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी |
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि शां शीं शूं मे शुभं कुरु || ६ ||
हुं हुं हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी |
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः || ७ ||
अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं
धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा |
पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा || ८ ||
सां सीं सूं सप्तशती देव्या मंत्र सिद्धं कुरुष्व मे || ९ |किसीपंडित से या गुरु से मार्गदर्शन अवस्य ही प्राप्त करे और फिर साधना में आये
साधना में हानी लाभ के स्वयं उत्तर दाई हे अपनी जिम्मेदारी पर ही करे ।

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